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भ्रम विध्वंसनम् ।
केतला एक अजाण जीव इम कहे-असंयती जीवांरो जीवणो वांछयां धर्म छै। ते कहे-असंयती जीवारा जीवण रे अर्थे उपदेश देणो । ते सूत्र ना अजाण छै। अनें साधु तो असंयम जीवितव्य जीवे नहीं. जीवावे नहीं. जी वता में भलो पिण जाणे नहीं। तो असंवा जोचितव्य वाछयां धर्म किहाँ थकी । ठाम २ सूत्र में असंयम जीवितव्य अनें बाल मरण वांछणो बर्यो छै। ते संक्षेपे सूब साखरी कहे छै। ठाणाङ ठाणे १० दश वांछा करणी बजीं। तिहां कह्यो जीवगो मरणा वांछणो नहीं। ए पिण असंयम जीवितव्य अनें बाल मरण आश्री बज्यो छै। (१) तथा सूयगडाङ्ग अ० १० गा० २४ जोवणो मरणो वांछणो नहीं । ए पिण जीवणो ते असंयम जीवितव्य आश्री कह्यो। (२) तथा सूयगडाङ्ग अ० १३ का० २३ में पिण जीवणो मरणो वांछणो वर्यो । ए पिण असंयम जीवितव्य आश्री
ज्यों छै। (३) तथा सूयगडाङ्ग अ० १५ गा० १० में कह्यो असंयम जीवितव्य ने अमाद देतो विनर । (४) तथा सूयगडाङ्ग अ० ३ उ० ४ गा० १५ में पिण कहो सीको मरणो घांछणो नहीं। एपिण असंयम जीवितव्य बाल मरण बर्यो । (५) तथा सूयगडाङ्ग अ०५ उ० १ गा० ३ में पिण असंयम ना अथों में बाल अज्ञानी पाया। (६) तथा सूयगडाङ्ग अ० १० गा० ३ में पिण असंयम जीवितव्य बांछणो वयो। (७) तथा सूयगडाङ्ग .अ० २ उ० २ गा० १६ में कह्यो। उपसर्ग उपमा कष्ट सहि गो। पिण असंयम जीवितव्य न वांछगो। (८) तथा उत्तराध्ययन अ० ४ गा. 9 में कह्यो। जीवितव्य वधारवा ने आहार करवो। ए. संयम जीवितव्य आश्री कहो। (६) तथा सूयगडाङ्ग अ० २ उ०१ गा० १ में कह्यो। संयम जोवि. तव्य दोहिलो (दुर्लभ) छै। पिण असंयम जीवितव्य दोहिलो न थी कह्यो। (१०) तथा आवश्यक सूत्र में "नमोत्थुषं" में कह्यो “जोवदयाणं" जीवितव्य ना दातार ते संयम जीवितव्य ना दातार आश्री कह्या। (११) तथा सूयगडाङ्ग अ० २ उ० १ मा० १८ में जोवण वांछणो वज्यों। ते पिण असंयम जोवितव्य वो छै। (१२) तथा सूयगडाङ्ग श्रु २. अ०५ गा० ३० में कह्यो। सिंह वाघादिक हिंसक जोव देखी में मार तथा मत मार कहिणो नहीं। इहां पिण तेहना जीवण रे अर्थे मत मार कहिणो नहीं। (१३) तथा दशवैकालिक अ०७ गा० ५० में कह्यो देव मनुष्य लिया माहोमाही विग्रह करे ते देखी में तेहमी हार जीत वांछणो नहीं । (१४) तथा का कालिक अ०७ गा० ५१ में बायरो १ वर्षा २ शीत ३ ताबड़ो ४ कलह ५