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भ्रम विध्वंसनम् ।
एक "सव्वं सावज जोगं पचकखामि" सर्व सावद्य योग रा म्हारे पचखाण है ।। इम पाठ कही चारित्र आदलो । तो ते गृहस्थ ने देवो त्याग्यो- ते पिण सावध जाण ने त्याग्यो छै । साबध कार्य में धर्म किम कहिये । डाहा हुषे तो विचारि
जोइजो ।
इति ३२ बोल सम्पूर्ण ।
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तथा जे सूथगडाङ्ग में कह्यो जे साधु गृहस्थादिक में देवो त्याग्यो । तै संसार भ्रमण नों हेतु जाण ने छोड्यो. एहवो कह्यो । ते पाठ लिखिये छै ।
जेहिं food भिक्खू अन्नपाण तहाविहं अप्पयाण मन्नेसिं तं विज्जं परिजाणिजा ।
( सूयगडांग श्रु० १ ० ६ गा० २३ )
जे० जेणे अन्नपाणी इं इम करी इह लोक नें विषे भि० साधु संयम निर्वहे जीवे तथा विव तहवो निर्दोष अन्नपाणी ग्रहे आजीविका करे एह अन्नपाणी नों देवो केहनें. म० गृहस्थ में पर तीर्थी ने असंयती नें सं० ते सर्व संसार भमवा हेतु जाणी ने पंडित परिहरे ।
इहाँ पिण कह्यो । ते गृहस्थादिक ने देवो संसार भ्रमण नों हेतु जाणी
ने
साधु त्याग्यो । इम कह्यो तो गृहस्थ में तो श्रावक पिण आयो । तो ते श्रावक ने दान री साधु अनुमोदना किम करे । तिण में धर्म पुण्य किम कहे। डाहा हुवे तो विचारि जोजो ।
इति ३३ बोल सम्पूर्ण ।
बली निशीथ सूत्र में इम कह्यो । जे गृहस्थ नों दान अनुमोदे तो चौमासो प्रायश्चित आये । ते पाट लिखिये ।