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दानाऽधिकारः ।
त तिवारे से० ते स० शकडाल पुत्र स० श्रमणोपासक गोशाला म'खलि पुत्र ने. ए० इम बोल्या. हे देवानु प्रिय ! तु० तुम्हे माहरा धर्माचार्य ना. जा० यावत् महावीर देवता. स० [छता. त० सांचा. सु० तेहवा यथाभूत. भा० भाव थी. गु० गुण कीर्त्तन कला. ते० ते भणी. प्र० हूँ. तु० तुझ ने. पा० पाड़ीहारा पी० वाजोट जाव संथारी उ० थापूं हूं. मो० नहीं पिया निश्चय ध० धर्म ने अर्थे न० नहीं तप ने थे.
अथ अठे पिण गोशाला ने पीठ फलक शय्या संथारा शकडाल पुत्र दिया । तिहां धर्म तप नहीं इम का । तो गोशाला तो तीर्थङ्कर बाजतो थो तिण ने दियां ही धर्म तप नहीं तो असंयती ने दियां धर्म तप केम कहिये । पुण्य पिण न श्रद्धव । पुण्य तो धर्म लारे बंधे छै ते शुभयोग छै । ते निर्जरा विना पुण्य निपजे नहीं। ते माटे असंयती ने दियां धर्म पुण्य नहीं । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति २० बोल सम्पूर्ण |
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वली असंयती ने दियां कडुआ फल कह्या छै । ते पाठ लिखिये छै ।
• सेां भंते । पुरिसे पुब्बभवे के आसिं किंणामएवा. किंगोएवा. कयरंसि गामंसिवा. नयरंसिवा. किंवादच्चा, पुराणं. दुच्चिरणाणं. दुष्पड़िकंताणं. असुभाणं. पावाणं. कम्माणं. पावगं फल वित्ति विसेसं पच्चणुं भवमाबो भोच्चा किंवा समायरता केसिंगा पुरा किच्चा जाव विहरइ |
( विपाक अ० १)
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मुग्ध जनोंको मोहनेके लिये बाईस सम्प्रदायके पूज्य जवाहिरलालजी की प्रिया "प्रत्युत्तर दीपिका " इस पाठपर पञ्चम स्वरमें अलापती है । एवं अपने प्रथम खण्डके १५० पृष्टमें श्री जिनाचार्य जीतमल जी महाराज को इस पाठमें से कुछ भाग चोर लेने का निर्मूल प लगाती हुई मिथ्या भाषण की श्राचार्य परीक्षा में उत्तम श्रेणी द्वारा उत्तीर्ण होती है । अव हम उक्त प्रिया की कोकिल कण्ठता का पाठकों को परिचय देते हैं । और न्याय करनेके लिये आग्रह करते हैं।