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दानाऽधिकारः।
तिहां ‘असती जण पोसणया" तथा "असइपोसणया" कह्यो छ। एहनों अर्थ केतला एक विरुद्ध करै छै। अने इहां १५ व्यापार कह्या छै तिवारे कोई इम कहे इहां असंयती पोष व्यापार कह्यो छै । तो तुम्हें अनुकम्पा रे अर्थे असंयती ने पोष्यां पाप किम कहो छै। तेहनो उत्तर–ते असंयती पोषी २ ने आजीविका करे ते असंयती पोष व्यापार छै। अनें दाम लियां बिना असंयती ने पोषे ते व्यापार नथी कहिये। परं पाप किम न कहिये। जिम कोयला करी बेचे ते "अंगालकर्म" व्यापार, अने दाम बिना आगला ने कोयला करी आपे ते व्यापार नथी। परं पाप किम न कहिये । जे वनस्पति बेचे ते “वण कर्म" व्यापार कहिये। अनें दाम लियां बिना पर जीव भूखा नी अनुकम्पा आणी वनस्पति आपे ते व्यापार नहीं। परं पाप किम न कहिये। इम जे बदाम आदिक फोड़ी २ आजीविका करे दाम ले ते “फोड़ी कर्म व्यापार" अनें दाम लियाँ बिना आगला री खेद टालवा बदाम नारियल आदिक फोड़े ते व्यापार नहीं। परं पाप किम न कहिए। इम आजीविका निमित्ते सर द्रह तालाव शोषवे ते सर-द्रह-तलाव शोषणिया व्यापार अनें जे आगला रे काम तलाव शोषवे ते व्यापार नहीं परं पाप किम न कहिये। तिम असंयती पोषी २ आजीविका करे। दानशाला ऊपर रहे रोजगार रे बास्ते तथा ग्वालियादिक दाम लेइ गाय भैंस्यां आदि चरावे। इम कुक्कुटे मार्जार आदिक पोषी २ आजीविका करे। आदिक शब्द में तो सर्व असंयती ने रोजगार रे अर्थे राखे ते असंयती व्यापार कहिए. अनें दाम लियां बिना असंयती ने पोषे ते व्यापार नहीं। परं पाप किम न कहिये। ए तो पनरे १५ ई व्यापार छै ते दाम लेई करे तो व्यापार । अनें पनरे १५ ई दाम विना सेवे तो व्यापार नहीं। पर पाप किम न कहिये। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति २३ बोल सम्पूर्ण ।
वली केतला एक इम कहे-जे उपासक दशा अ० १ प्रथम व्रत मा ५ अती. चार कह्या। तिण में भात पाणी रो विच्छेद पाड्यो हुवे, ए पांचमो अतिचार कह्यो छै। तो जे असंयती में भात पाणी रो विच्छेद पाड्यां भतीधार लागे। ते