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दानाऽधिकारी
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अत ना ५ अतिचार में दास दासी स्त्री आदिका ने मारवा ने अर्थे घर में बांधी भात पाणी ना विच्छेद पाड्याँ भतीचार परं दास दासी पुत्रादिक ने पोषे, तिण में धर्म किम कहिये। जे तिर्यश्च रे भात पाणी रा विच्छेद पाड्यां अतीचार छै। तिम मनुष्य ने भात पाणी रो विच्छेद पाड्यां अतीचार छै। अ तिर्यञ्च ने भात पाणी थी पोष्यां धर्म कहे तो तिण रे लेखे दास दासी पुत्र स्त्रियादिक मनुष्य में पिण पोष्यां धर्म कहिणो। ए अतोचार तो समचे त्रस जीवने भात पाणी रो विच्छेद करे ते अतीचार कह्यो छै। अने बस में तिर्यश्च पिण आया मनुष्य पिण आया । अमें जे कहे स्त्रियादिक ने पोषे ते विषय निमित्ते, दास दासी ने पोषे ते काम ने अर्थे । तिण सुं या ने पोष्यां धर्म नहीं। तो गाय भैंस ऊंट छाली वलद इत्यादिक तिर्यञ्च ने पोषे ते पिण घर रा कार्य में : अर्थ इज पोषे । ए तो तिर्यञ्च मनुष्य नवजाति ना परिग्रह माहि छै। ते परिग्रह ना यत्न कियां धर्म किम हुवे । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो।
इति २४ बोल सम्पूर्ण ।
वली कोई इम कहे । तुंगिया नगरी ना श्रावका रा उघाड़ा वारणा कह्या छै। ते भिख्याखां ने देवा ने अर्थे उघाड़ा वारणा छै। इम कहे. तेहनों उत्तर:उघाड़ा वारणा कह्या छै. ते तो साधु री भावना रे अर्थे कहा छ । ते किम-जे और भिख्यारी तो किमाड़ खोल ने पिण माहे आवे छै। अने साधु किमाड़ खोलने आहार लेवा न आवे। ते माटे श्रावका रा उघाड़ा वारणा कह्या छै। साधु री भावना रे अर्थे जड़े नहीं। सहजे उघाड़ा हुवे जद उघाड़ाज राखै। तिणसुं "अवगु'य दुवारा" पाठ कह्यो छै। भगवती श० २ उ० ५ तुंगिया नगरी ना धावका रे अधिकारे टीका में वृद्ध व्याख्यानुसारे अर्थ कियो ते टीका कहे छ।
अवगुंय दुवारेति-अप्रावृतद्वाराः कपाटादिभि रस्थगित गृह द्वारा इत्यर्थः । सद्दर्शन लाभेन न कुतोपि पाषंडिका द्विभ्यति शोभन मार्ग परिग्रहेणोद्घाट शिरसस्तिष्ठन्तीति भावः-इति वृद्धव्याख्या । . .