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भ्रम विश्वसनम्।
बुत कही। अनें पांच स्थावर हणवा गे आगार छोटो झूठ छोटी चोरी मिथुन परिग्रह री मर्यादा कीधी-ते मांहिला सेवन सेवावन अनुमोदन रो आगार ते अबूत कही। वली एक एक आरंभ समारंभ रा त्याग कीधा ते वृत एकैक रो आगार ते अत एकैक करण करावण पचन पचावन रा त्याग ते वृत एकैक रो आगार ते अबृत । एकैक कूटवा थी पीटवा थी बांधवा थी निवृत्या-ते तो व्रत अर्ने एकैक कूटवा थी बांधवा थी निवृत्या न थी ते अत एकैक स्नान उगटनों विलेपन शब्द स्पर्श रस पकवांनादिक गन्ध कस्तूरी आदिक अलंकारादिक थी निवृत्या ते व्रत एकैक थी न निवृत्या ते अवत । जे अनेराई सावध योग रा त्याग ते तो बुत । अनें आगार ते अबुत । इहां तो जेलला २ त्याग ते व्रत कह्या। अ जेतला २ आगार ते अबुत कहा । तिण में रस पकवानादिक रा गेहणा रा त्याग ते बुत कही। अनें जेतलो खावण पीवण गेहणादिक भोगवण रो आगार ते अबत कही छै । ते अबूत सेवे सेवावे अनुमोदे ते धर्म नहीं। जे श्रावक तपस्या करे ते तो बुत छै। अनें पारणो करे ते अत माही छै। आगार सेवे छै-ते सेवनवाला ने धर्म नहीं तो सेवावण वाला ने धर्म किम हुवे । ए अबूत एकान्त खोटी छै। अबत तो रेणा देवी सरीखी छै । ठाणाङ्गठागे ५ तथा समवायाङ्ग अपत ने आश्रय कह्या छै। ते अबुत सेव्यां धर्म नहीं। किण ही श्रावक १० सूकड़ी १० नीलौती उपरान्त त्याग कीधा ते दश उपरान्त त्यागी ते तो त छै धर्म छै। अने १० नीलोती १० सूकड़ी खावा रो आगार ते अत छै। ले आगार आप सेवे तथा अनेरा ने सेवावे अनुमोदे ते अधर्म छै-सावद्य छै । जिम किणही भावक ३ आहारना त्याग कीधा एक ऊन्हा पाणी रो आगार राख्यो तो ते ३ आहार रा त्याग तो त छै धर्म छै। अनें एक ऊन्हा पाणी रो आगार रह्यो ते अवृत छै, अधर्म छै। ते पाणी पीवे अनें गृहस्थ में पावै अनुमोदे तिण बुत सेवाई के अबुत सेवाई । उत्तम विचारि जोइजो। ए तो प्रत्यक्ष पाणी पीयाँ पाप छै। ते पहिले करण अबूत सेवे छै। और ने पावे ते बीजे करण अबुत सेवावे छै। अनुमोदे ते तीजे करण छै। जे पहिले करण पाणी पीयां पाप छै तो पायां अनुमोद्याँ धर्म किम होवे । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति २६ बोल सम्पूर्ण।
चलीभनत ने भाव शस्त्र कह्यो ते पाठ लिखिये ----