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दामाऽधिकारः।
साधु तथा जिन कल्पी साधु भलो जाणे अनुमोदना करे छ। भनें श्रावक न साधु अशनादिक देवे नहीं देवावे नहीं अनें देता नें अनुमोदे नहीं। बली आक्षा पिण देवे नहीं तिणसू श्रावक ने जिमायां ऊपर पार्श्वनाथ महावीर ना साधु नों न्याय मिले नहीं। वली पार्श्वनाथ ना साधु केशी स्वामी गौतम ने संथारो दियो कमो छै ते पाठ लिखिये छै ।
पलालं फासुयं तत्थ पंचमं कुस तणाणिय । गोयमस्स निसेज्जाए खिप्पं संपणामए॥
( उत्तराध्ययन भ० २३ गा० १७ )
. पराल. फा० प्राशुक जीवरहित निर्जीव । त• तिहां तिन्दुक भामा वन में दिन चार प्रकार मा पराल शालिनों १ ब्रीहिनों २ कोवानों ३ रालानाम बनस्पति नों ४ ५० पांचों हाभ प्रमुख नों ५ अ० अमेरा पिण साधु योग्य तृणादिक. गो० गोतम ने नि० वैसवा ने प्रथ मि० शीघ्र सं० श्रापे छ. बैठवा निमित्त.
अथ इहां गौतम ने तो केशी स्वामी सन्थारो भाप्यो कह्यो छ। भनें श्रावक ने तो साधु संथारादिक विविधे करि आपे नहीं। ते भणी पार्श्वनाथ महावीर ना साधु रो न्याय श्रावक ने जिमाव्यां ऊपर न मिले। डाहा हुवे तो विचारि जोइनो।
इति ३० बोल संपूर्ण।
तथा धली असोचा केवली अन्यमति मा लिङ्ग थकां कोई ने शिप्य न करे बखाण करे नहीं। पिण अनेरा साधु-कने "तूं दीक्षा ले" एहळू उपदेश करे हैं। ते पाठ लिखिये छ।
सेणं भंते पव्वावेजवा मंडावेजवा. णो इणडे समटे उवदेसं पुण करेजा।
भिगवतो श६.३१