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दामाऽधिकारः।
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फासु एसणिज्जेणं" इत्यादि. श्रमण निर्ग्रन्य में प्रासु एषणीक देतो थको विचरे । इम साधु ने देवा नों पाठ कह्यो। ते माटे साधु रे अर्थ उघाड़ा दारणा कहा। पिण भिख्याखां रे अर्थे उघाड़ा वारणा कह्या न थी। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो।
इति २५ बोल सम्पूर्ण
फेतला एक कहे छै । जे भगवती श० ८ उ० ६ असंयती ने दीर्धा एकान्त पाप कह्यो। पिण संयतासंयती ने दियां पाप न कह्यो। ते माटे श्रावक ने पोष्यां धर्म छै । अनें धावक ने दीयां पाप किण सूत्र में कयो छे । ते पाठ बतावो। इम कहे तेहनों उत्तर-सूयगडाङ्ग श्रु० २ ० ७ तीन पक्ष कह्या छै। धर्मपक्ष-अधर्मपक्षमिश्रपक्ष. साधु रे सर्वथा व्रत ते “धर्मपक्ष" अव्रती रे किञ्चत् व्रत नहीं. ते “अधर्मपक्ष" श्रावक रे केई एक वस्तु रा त्याग ते.तो व्रत केई एक वस्तु रा त्याग नहीं ते अत्रत, ते भणो श्रावकने “मिश्रपक्ष"कही जे । जेतली व्रत छै श्रावक रे-ते तो धर्मपक्ष माहिली छै। जेतली अव्रत छै ते अधर्मपक्ष माहिलो छै। अव्रत से ये सेवावे अनुमोदे तिहां वीतराग देव आज्ञा देवे नहीं। ते भणी श्रावक री अत्रत सेव्यां सेवायां धर्म नहीं । श्रावक रे जेतला २ त्याग छै ते तो व्रत छै धर्म छै तेतलो २ आगार छै. ते अत्रत छै अधर्म छै। ते श्रावक रा व्रत अनें अव्रत नों निर्णय सूत्र साक्षी करी कहे छै।
सेजे इमे गामागर नगर जाव सणिणावेसेसु. मनुया भवंति. तं० अप्पारंभा अप्प परिग्गहा. धम्मिा . धम्लाणा. धम्मिट्ठा. धम्मक्वाई. धम्म पलोइ. धम्मपल्लयण'. धम्मसमुदायरा. धम्मेणं चेव बित्ति कप्पेमाणा. सुलीला तुम्बया सुपडिआणंदा साहु एगच्चाओ. पाणाइवायाओ पांडविरया जाव जीवाए. एगच्चाओ अप्पडिविरया. एवं जाव परिग्गहारो