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भ्रम विध्वंसमम् ।
जो मिथ्यात्वी नी शुद्ध करणी आज्ञा वाहिरे हुवे, तो देशआराधक फ्यूं कह्यो । ए तो पाधरो न्याय छै। तथा घली “उवाई" मध्ये अम्बसु ने परलोक नो आराधक कह्यो छै। वली सर्व श्रावका में "उवाई" प्रश्न २० परलोक ना आराधक कह्या छ। अने मिथ्यात्वी तापसादिक ने परलोक ना अनाराधक कह्या छै। जो परलोक मा अनाराधक कयां माटे ते प्रथम गुणठाणा रे धणी रा सर्व कार्य आज्ञा वाहिरे कहे तिणरे लेखे अम्बड सन्यासीने तथा सर्व श्रावका ने परलोक ना आराधक कह्या छै ते भणी ते श्रावकां ना पिण सर्व कार्य आज्ञामें कहिणा । तो चेष्ठो राजा संग्राम कीधो, घणा मनुष्य मासा, तेहने लेख ए पिण कार्य आशामें कहिणो। "वर्णनागनतुयो" ए पिण श्रावक हुन्तो, ते परलोक नो आराधक थयो तो तेहने लेखे ए पिण संग्राम करि मनुष्य मासा, ए पिण कार्य आज्ञामें कहिणो । अम्बड कायो पाणी नदीमें वहतो आशा थी लेतो ते पिण आज्ञामें कहिणो। वली श्रावक अनेक वाणिज्य व्यापार हिंसा झूठ चोरी कुशीलादिक सेवे छै। अनें उवाई प्रश्न २० सर्प श्रावका ने परलोक ना आराधक कह्या छै। जो आराधक वाला री सर्व फरणो आज्ञा में कहे तो ए श्रावकां रा हिंसादिक सर्व सावध कार्य आशामें कहिणा। अने परलोक ना आराधक कह्या त्यां श्रावका री अशुद्ध करणी संग्राम कुशीलादिक आशा बाहिरे कहे तो प्रथम गुणठाणा रा धणी ने परलोक ना अनाराधक कह्या, तेहनी शुद्ध करणी शील तपस्या क्षमा सन्तोषादिक भला गुण आज्ञामाहि कहिणा। ए तो पाधरो न्याय छ। तथा. वली “रायपसेणी" सूत्र में सूर्याभदेव ने भगवन्ते आराधक कह्यो–जो आराधकवाला री करणी सर्वआशामें कहै तो तिणरे लेखे सूर्याभ पिण सावधकामा राज्य वैसतां ३२ थाना पूज्या। बली कुशीलादि तेहना सर्बआशामें कहिणा। वली भगवती श० ३ उ० ८ सनस्कुमार तीजा देवलोकना इन्द्रने पिण "आराहए नो विराहए" एहवा पाठ कह्यो। पतले अधिक कह्यो, तो तिणरे लेखे तेहनी सावद्यकरणी पिण आशामें कहिणी । भक्त्येन्द्र-ईशानेन्द्र-चनरेन्द्र इत्यादिक अनेक देवता ने आराधक कया छै। पिण तेड्नी सावधकरणी आज्ञामें नहीं, ए आराधक छै ते सम्यग्दृष्टिरे लेखे छै, पिण करणी लेखे नहीं । तिम मिथ्यात्वी ने आराधक नथी इम कहा तेपिण सम्यक्त्व तथा संवर नथी, ते लेखे अनाराधक कहा। पिण करणोरे लेने नथी कझा । वली "मानन्द'' आदिक श्रावकारे धरे घणा