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दानाऽधिकारः।
ने निषेधे. ते वि० वृत्तिच्छेद वर्तमान काले पामबानो उपाय तेहनों विघ्न करे. ते अविवेकी ॥२०॥ वली राजादिक साधु ने पूछ तिबारे जे करिवो ते दिखाई दै. दु० बिहू प्रकारे. ते० ते साधु. म. न भाषे. अ० अस्ति पुण्य छै। न० एवं पुण्य नहीं है. इम न कहे। पु० वली मौन करी विहूं माहिलो एम इम प्रकारे बोले तो स्यूं थाय. ते को छ । प्रा० लाभ थाय किसानों. २० पापरूप रज तेहनों लाभ थाय ते भणी अविध भाषवो द्वांडवे निरवद्य भाषवे करी नि० मोक्ष. पा० पामे. ते ते साथ ॥ २१॥
__ अथ अठे इम कह्यो जे सावद्य दान प्रशंसे ते छह काय नो बधनो बंछणहार कह्यो। अने जे वर्तमान काले निवेधे ते अन्तराय रो पाडणहार कहो। वृत्तिच्छेद नो करणहार तो वर्तमान काले निषेध्यां कह्यो पिण और काल में कह्यो नहीं। अने सावध दान प्रशंसे तेहने छवकाय नी घात नो बंछणहार कह्यो, तो देणवाला ने घाती किम कहिये। जिम कुशील ने प्रशंसे तेइने पापी कहिये , तो सेवणवाला में स्यूं कहियो। तिम सावद्य दान प्रशंसे तेहने घाती कह्यो तो देवणवाला ने स्यूं कहिवो दान प्रशंसे ते तो तीजे करण छै ते पिण घाती छै तो जे दान देवे ते तो पहिले करण घाती निश्चय ही छै तेहमें पुण्य किहां थकी। अने वर्तमान काले निषेध्यां वृत्तिच्छेद कही। पिण उपदेश में वृत्तिच्छेद कह्यो नहीं। तिवारे कोई कहे-ए वर्तमान काल रो नाम तो अर्थ में छै। पिण पाठ में नहीं तिण ने इम कहिणो ए अर्थ मिलतो छ अने पाठ में वृत्तिच्छेद कही छै। दान लेवे ते देवे छते वेलां निषेध्यां वृत्तिच्छेद हुवे अने जे लेवे ते देवे न थी तो वृत्तिच्छेद किम हुवे। ते माटे वृत्तिच्छेद वर्तमानकाल में इज छै। वली "सूयगडांग" नी बृत्ति शीलाङ्काचार्य कौधी ते टीका में पिण वर्तमान काल रो इज अर्थ छै। ते टीका लिखिये छै।
एन मेवार्थ पुनरपि समासतः स्पष्टतरं विभणिषुराह--
जेयदाण मित्यादि-ये केचन प्रपा सत्रादिकं दानं बहूनां जन्तूना मुपकारीति कृत्वा प्रशंसन्ति (श्लाघन्ते) । ते परमार्थानभिज्ञाः प्रभूततर प्राणिनां तत्प्रशंसा द्वारेण बधं ( प्राणातिपातं ) इच्छन्ति । तदानस्य प्राणातिपात मन्तरेणाऽनुपपत्तेः । ये च किल सूक्ष्मधियो वय मित्येवं मन्यमाना आगम सद्भावाऽनभिज्ञा. प्रतिषेधन्ति ( निषेधयन्ति ) तेप्यगीतार्थाः प्राणिनां वृतिच्छेदं वर्त्तनोपायविघ्नं कुर्वन्ति” ॥२०॥
"तदेवं राज्ञा अन्येन चैश्वरेण कूप तडाग्र सत्रदाना द्युद्यतेन पुण्य सद्भावं