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दानाऽधिकारः ।
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ने थापे । पिण इहां तमतमा शब्द कह्यो - ते नरक ने कही छै । परं मिथ्यात्व ने न
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को उत्तराध्ययन अवबूरी में पिण इम को छै ते अवचूरी लिखिये है ।
“भोजिता द्विजा बिप्रा नयन्ति प्रापयन्ति तमसोपि यत्तमस्तस्मिन् रौद्रे रौरवादिके नरकेणं वाक्यालंकारे ।”
अथ इहां अवचूरी में पिग इम कह्यो तम अन्धकार में अन्धारो एहवी नरक में जावे । तमतमा शब्द रो अर्थ नरकहीज कह्यो, रौरवादिक नरका वासानों नाम कही बतायो छै । तो जोवोनी बिप्र जिमायां नरक कही अने गणधरे का विमासी बोल्या इम सराया छै । तो असंयती ने दियां पुण्य किम कहिये । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
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इति ११ बोल सम्पूर्णा ।
तिवारे कोई इम कहे । सहजे वेद भण्या अनुकम्पा ने अर्थे बिप्र जिमांया नरक जाय तो श्रावक पिण विप्र जिमावे छै । ते तो नरक जाय नहीं, ते माटे ए तो मिथ्यात्व थकी नरक कही छे। अने जे दान थी नरक जाय तो प्रदेशी दानशाला मंडई ते तो नरक गयो नहीं । तेहनों उत्तर - ए समचे माठी करणी रा माठा फल ह्या छै। सूत्र में मांस खाय पचेन्द्रिय हणे ते नरक जाय. एहवो कह्यो । ते पाठ लिखिये छै ।
रइ उयकम्मा सरीरम्पद्योग बंधे भंते! पुच्छा गोयमा ! महारंभयाए. महा परिग्गहियाए. पंचिंदिय बहेगां कुणिमाहारेणं. रइया उयकम्मा. सरीरप्पयोग णामाए कम्मस्स उदरणं रइया उयकम्मा शरीर जाव प्पओग
बंधे ।
( भगवती श० ८ उ० ६ )
० नारकी आयु. कर्म शरीर प्रयोग बन्ध केम हुइ' तेहनी. पु० पृच्छा. हे गौतम! म० महारंभ कर्षणादिक थी. म० परिमाण परिग्रह तेहने करी ने करी ने मांस भोजन तेणें करी ने ने० नारकी नो आयुकर्म शरीर ० नारकी आयु कर्म शरीर. जा० यावत् प्रयोग बंध हुवे ।
पंचेन्द्रिय जीव नो जे बध तेणे प्रयोग नाम कर्म ना उदय थी.