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भ्रम विध्वंसनम्
किम् प्रतिलाभे । ए तो बात प्रत्यक्ष दिले नहीं “पडिलाइ” नाम तो देवा नों छे । पिण गुरु जाणी देवे इम नहीं। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति ८ बोल संपूर्ण।
... पतले का थके समझ न पड़े तो प्रत्यक्ष “पडिलाभ” नाम देवानों छ। ते सूत्र पाठ कहे छ।
दक्विणाए पडिलंभो अस्थिवा नस्थिवा पुणो । ... नवियागोज मेहावी संति मग्गंच बृहए ॥
___ (सूयगडांग श्रु० २ लू: ५ गा० ३३ )
द० दान तेहनों. ५० गृहस्थ देवो लेणहार में लेवो इसो व्यापार वर्तमान देखी अ० अस्ति नास्ति गुण दूषण कोई न कहे गुण कहिता असंयम नी अनुमोदना लागे. दूषण कहिता वृत्तिच्छेद थाय. इण कारण न अस्ति नास्ति न कहे. मे मेधावी हि साधु किम वोले. स० ज्ञान दर्शन चारित्र रूप. कु. वधारे एतावता जिण बबन बोल्पां. असयम सापद्य ते थाय तिम न बोले।
अब अठे कह्यो “दक्खिणाए” कहितां दान नी “पडिलंभो” कहितां देवो एतले गृहस्थ ने दान देवे, तिहां साधु अस्ति नास्ति न कहे मौन राखे। इहां पिण “पडिलंभ" नाम देवानों कह्यो । ए गृहस्थादिक ने दान देवे तिहां “पडिलभ" पाठ कह्यो । जे “पडिलंभ" रो अर्थ साधु गुरु जाणी देवे, इम अर्थ करे छ। तो गृहस्थ ने साधु जाणी किम देवे। ए गृहस्थ ने साधु जाणे इज नहीं, ते माटे “पडिलाभ' नाम देवानों इज ही छै। पिण साधु जाणी देवे इम अर्थ नहीं। इम घणे ठामे “पडिलाभ" नाम देवानों कह्यो छै। सूत्रनों न्याय पिण न माने तेहनें मिथ्यात्व मोह नों उदय प्रबल दीसे छ। भगवती श० ५ उ० ६ तथा ठाणाङ्ग ठाणे ३ साधु ने उत्तम जाणी बन्दना नमस्कार भक्ति करी मनोज्ञ आहार देवे तिहां पिण “पडिलाभित्ता' पाठ कह्यो (१) तथा साधु खोटो जाणी हेला. निन्दा.