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दानाऽधिकारः।
अवज्ञा अपना करी जाहर सरीखो अमनोज्ञ आहार देवे मिति “पडिलाभिता पाठको (२) तथा भाचाराङ्ग ०२ अ० १ उ०७ साधु मा पहिरावे तिहां पिज "दलाए पाठ कालो। (३) तथा ज्ञाता अ० १४ मा भारक ना व्रत धाला पहिला सावीयां में अशताहिक दियो तिहां “पडि पाठ कहो पछे वशीकरण चाल पूछी अन गुरु तो पछे कला। (४) इन ज्ञाता अ०१६ सुखमालिका पिव शुरु कीधा पहिला आया में हिरायो तिहां “पडिला" पाठ क.ह्यो। (५) तथा शाता अ० ५ सुदर्शन. शुकदेव ने अशनादिक दियो ति मिल “पडिलाममाणे" ए पाठ श्री भगवन्ते कयो। (६) तथा सूयगडांग ०२ १०५ गा० २३ गृहस्थादिक में दान देवे तिहां “पडिलंभ" पाठ कह्यो छै। इत्यादिक अनेक ठामे पडिलंभ नाम देवानो कयो पिण साधु जाणवा रो कारण नहीं। तिम असंयती ने पिण सचित्तादिक देवे तिहां “पहिलाभमाणे" पाठ कयो । ते पडिलाम नाम देवानो छ। ते भणी असंयती ने अशनादिक प्रतिलभ्या राहो भावे दिया कहो। जे तथा रूप असंयती ने श्रावक तो साधु जाणे इज नहीं। अने साधु जाण ने श्रावक तो असूझतो तथा सचित्त अशनादिक देवे नहीं। ए तो पाधरो न्याय छै। तो पिण दीर्घ संसारी सूत्र को पाठ मरोड़ता शङ्क नहीं, वही तथा रूप असंयती ने इज अन्य तीर्थी कहे तो पिण झूठा छै। तथा रूप असंयती में तो साधु श्रावक बिना सर्व आया। तिम तथारूप श्रमण में दियां एकान्त निरा कही। ते तथा रूप श्रमग में सर्व साधु आया कोई साधु वाकी रहो नहीं। लिम तथा रूप असंयती में सर्व असंयती आया। अन्य तीर्थी ने पिण अभ्यतीनों इज रूप छ। वली वणिमग रांक भिख्यासां रे पिण असंयती नों इज रूप छै। ते माटे या सर्व तथा रूप असंयती कही जे। वली साधु रा वेष में रहे पर ईर्या भाषा एपणा आचार श्रद्धा रो ठिकाणो नहीं ए पिण साधु रो रूप नहीं। ते भणी तथा रूप असंयती इज छै आचार श्रद्धा व्यवहार करी शुद्ध छै ते तथा रुप साधु छै तेहने दियां निर्जरा छै। अनें तथा रूप असंयती ने दियां एकान्त पा श्री बोतरागे कयो छै । तेह में धर्म को ते महामूर्ख छै। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इतिह बोल सम्पर्शा। केला एक कहे । असंयती ने दीधां धर्म नहीं परं दुव्यवहनो उत्तर। जे पुण्य दुवे. तो आर्द्रकुमार “पुण्य कहे, त्यांने क्यूं निषेध्या। ते पार लिखिये छ।