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दानाऽधिकार:
त तिवारे प्रा० अानन्द नामक गाथा पति. स० श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी रे. निकटे. पं० ५ अनुप्रत. स. ७ शिक्षारूप. दु० १२ प्रकार रा सा० श्रावक धर्म. प० अंगीकार कीधो. करी ने स० श्रमण भावान् महावीर स्वामी वांद्या. नमस्कार कीधी. वांदीने. न नमस्कार करी ने. ए० इम. व० वोल्या. णो नहीं. ख० निश्चय करी ने. मे० मोनें. भ० हे भगवन्त ! क० कल्पई. अाज पछे अ० अन्य तीर्थी शाक्यादिक. अ० अन्य तीर्थी ना देव हरि हरादिक श्रः अन्यतीर्थिये १० श्रापण करी ने ग्रह्या. अ० अरिहन्त ना. चे साधु-ते में. वं वन्दना करवी न कल्पई पू० पहिल. अविना बोलायां ते हने. अ० एकबार बोलाविवो न कल्पे. स. बार बार बोलाविवो न कल्धे दे० तेह ने अ० अशनादिक ४ श्राहार दा० देवू नहीं. अ० अनेरा पाहे दिवरावू नहीं. ण एतलो विशेष. रा० राजाने आदेशे आगार ग० घणा कुटुम्ब ना समवाय ने आदेशे आगार २०० कोई एक बलवन्त ने परवश पणे आगार ३ दे देवता ने परवश को आगार. गु० कुटुम्ब में बड़े रो ते गुरु कहिये तेह ने आदेशे ग्रागार. वि० अटवी कांतार ने विषे कारण अागार ६ ।
अथ अठै भगवान् कनें आनन्द आवक १२ ब्रत आदला तिण हिज दिन ए अभिग्रह लीधौ । जे हूं आज थी अन्यत्तीर्थी ले अने अन्यतीर्थों ना देव ने अने अन्य तीथीं ना ग्रह्या अरिहन्त ना चैत्य ते साधु श्रद्धाभ्रष्ट थया ए तीना में वांदू नहीं नमस्कार करू नहीं। अनादिक देवू नहीं देवावू नहीं। तिण में ६ आमार राख्या ते तो आपरी कचाई छै। परं धर्म नहीं । धर्म तो ए अभिग्रह लीधो निग में छै । अने आगार तो सावध छै। जो अन्य तीर्थी ने दियां धर्म हुये तो आनन्द श्रावक ए अभिग्रह क्यूं लियो । जे हूं अन्य तीर्थी ने देवू नहीं दिवा नहीं। ए पाठ रे लेखे तो अन्य तीर्थी ने देवो एकान्त सावध कर्म बंधनो कारण छै । तरे आजन्द छोड्यो छै। तिवारे कोई एक अयुक्ति लगावी कहे। ए तो अन्य तीर्थी धर्म रा व पी निन्दक ने देवा रा त्याग कोधा। परं अनाथ ने देवारा त्याग कीधा नहीं। तेहनो उत्तर-एह नो न्याय ए पाठ में इज कह्यो। जे हूं अन्य तीर्थी ने वांदूं नही आहार देवू नही। ए हमें तो अन्य तीर्थी सर्व आया। सर्व अन्य तीयों ने वंदना असनादिक नो निषेध कसो छै अने जे कहे धर्म ना द्वेषी ने देणो छोड्यो। बीजा अन्य नीर्थियां ने देवा रो नियम लीधो नहीं। इस कहे ते हने लेखे तो धर्म ना डेपी ने वन्दना न करणी वीजा ने वन्दना पिण करणी। ए तो बेहूं पाउ भेला कह्या छै। जो बीजा ग़रीब अन्यतीर्थी ने अशनादिक दियां पुण्य कहे तो तिणरे लेखे ते अन्य तीर्थयां ने वंदना कियां पिण पुणय कहिणो । अने जो वीजा गरीब अन्य तीर्थी ने वंदना कियां पुणय. नहीं तो अन्नादिक दियां पिण पुण्य नहीं। ए तो पाधरो न्याय छ। जे सर्व अन्य