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भ्रम विध्वंसनम् ।
afर्थयां ने वंदना नमस्कार करण रा त्याग पाप जाणी ने किया तो अन्नादिक देवा रा त्याग पिण पाप जाण ने किया छे । पहिला तो वन्दना रो पाठ अने पछे अशनादिक देवो छोड्यो पाठ छै । ते विहूं पाठ सरीखा छै । वली छव आगार रो नाम लेवे छै ते छत्र आगार थी तो अन्य तीर्थी ने वन्दना पिण करे अने दान पिण देवे । जे राजाने आदेशे अन्य तीर्थी ने वन्दना पिण करे दान पिण देवे । ( १ ) इम गण समुदाय ने आदेशे (२) वलवन्त ने जोड़े (३) देवता ने आदेशे (४) वडेरा रे को (५) ए पांच कारणे परवश पणे करी अन्य तीर्थी ने वन्दना पिण करे दान पिण देवे । भने छठो "वित्त कंतार" ते अटवी आदिक ने विषे अन्य तीर्थी आव्या है । तो एने अने रा लोक वन्दना करे, दान देवे छे। तो तेहना कह्या थी लज्जाई करी वन्दना fपण करे दान पिण देवे । ए लजाइ देवे वन्दना करे ते पिण परवश छै जे राजाने आदेशे ते पिण राजा री लाजरूप परवश पणो छै । इम छहूं आगार पर वश पणे वन्दना करे दान देवे। जो छठा आगार में दान में धर्म कहे तो वन्दना में पिण धर्म कहिणो । अनें जो वन्दना में धर्म नहीं तो ते दान में पिण धर्म नहीं ए तो छव आगार छै । ते आप री कचाई छै, पिण धर्म नहीं । जो यां ६ आगारां में धर्म हुवे तो सामायिक पोषा में ए आगार क्यूं त्याग्यो । ए तो आगार माठा छै । तरे छांडे छै धर्म ने तो छाँडे नहीं । जिसा पांच आगारां में फल हुवे तेहिज फल छठा आगार मो छे । खाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
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इति २ बोल सम्पूर्ण ।
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अत्र कोई कहे- (- अन्य तीथों ने देवारा आनन्दे त्याग कीधा पिण असंयती नेदेवारा त्याग नथी कीधा । ते माटे अन्यतीर्थी ने देवा नो पाप छे परं असंयती ने दियां पाप नहीं. असंयती ने दियाँ पाप कह्यो हुवे तो बतावो । ते ऊपर अती ने दियां पाप को छै । ते पाठ लिखिये छै ।