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भ्रम विध्वसनम् ।
अनें श्रीवीतराग देव तो प्रथम गुण ठाणा रा धणी री निरवद्य करणी ठाम २ शुद्ध कही छै आशामें कही छै ते करणी थी संसार घटायां संक्षेप साक्षीरूप केतला एक बोल कहे छै । भगवती श० ८ उ० १० सम्यक्त्व विना करणी करे तेहने देश आराधक कह्यो तथा ज्ञाता अ० १ मेघकुमारने जीवे हाथीभवे दया करी परीत संसार करी मनुष्य नो आयुषो वांध्यो कह्यो । (२) तथा सुख विपाक अध्ययन १ में सुमुखगाथापति सुदत्त अनगारने दान देय परीत संसारकरी मनुष्य नो आयुषो बांध्यो कह्यो। ( ३ ) तथा उत्तराध्ययन अ०७ गा० २० मिथ्यात्वीने निर्जरा लेखे सुव्रती कह्यो। (४) तथा भगवती श० ३ उ० १ तामलीनी अनित्य चिन्तवना कही । (५) तथा पुफिया उपांगे अ० ३ सोमल ऋषिनी अनित्य चिन्तवना कही। (६) कोई अनित्य चिन्तवना ने अशुद्ध कहे तो भगवती श० १५ छमस्थपणे भगवन्तमी भनित्य चिन्तवना कही (७) तथा उवाई में अनित्य चिन्तावनाने धर्मध्यान रो तेरहमो भेदकह्यो (८) तथा भगवती श० : उ० ३१ असोच्चा केवलीने अधिकार-प्रथम गुणठाणारे धणीरा शुभ अध्यवसाय. शुभपरिणाम. विशुद्धलेश्या. धर्मरी चिन्तवना. अमें अर्थ में धर्मध्यान कह्यो। (६) तथा जीवाभिगमे तथा जम्बूद्वीप पणति में पाणव्यन्तर मुखपाम्या ते भलापराक्रमथी पाम्या कथा । ते वाणव्यन्तर में मिथ्यादूष्टि इज उपजै छै। (१०) तथा ठाणाङ्ग ठाणा ४ उ० २ गोशाला रे. स्थविरां रे ४ प्रकार रो तप ऋह्यो । उग्रतप. घोरतप. रसपरित्याग. जिह्वा इन्द्रिय पटि संलीनता। (११) तथा दश वैकालिक अ० १ में संयम. तप. ए बिहूं धर्म कह्या (१२) तथा सूत्र रायपसेणीमें सूर्याभ ना अभियोगिया वीतराग ने वंदना कीधी । ते वन्दना करण री आज्ञा भगवान् दीधी. (१३) तथा भगवती श०२ उ० १ भगवन्त ने वंदना करण री स्कंदक सन्यासी ने गौतम स्वामी आज्ञा दीधी। (१४) इत्यादिक अनेक ठामे निरवद्य करणो ने शुद्ध कही। ते करणी ने अशुद्ध कहे आज्ञा वाहिरे कहे ते एकान्त मृषा. घादी जाणवा। छाहा हुवे तो विचारि जोइजो।
इति २६ बोल्न सम्पूर्ण।
चली केतला एक अजाणजीव इम कहे-जे उवाई में कह्यो छ। मातापिता सविनय थी देवता थाय। तो मातापिता रो विमय करे ते सापद्य छै भाशा