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कपाटाऽधिकारः ।
१ बोल पृष्ठ ४५६ से ४५६ तक । किमाड़ सहित स्थानक साधु नें मन करी पिण न वांछणो ( उ० अ० ३५ ) २ बोल पृष्ठ ४५७ से ४५७ तक ।
किमाड़ उघाड़वो ते अजयणा ( आ० आ० ४ )
३ बोल पृष्ठ ४५७ से ४५८ तक ।
सूने घर रह्यो साधु पिण न जड़े न उघाड़े ( सू० ) टीका ४ बोल पृष्ठ ४५६ से ४५६ तक ।
कण्टक बोदिया ते कांटा नी शाखा ना वारणा । आ० श्रु० २ अ० ५ उ० १) ५ बोल पृष्ठ ४६० से ४६१ तक ।
किमाड़ उघाड़वो पड़े एहवी जायगां में साधु नें रहिवो वज्यों छै । ( आ० श्रु० २ अ० २ उ०२ )
६ बोल पृष्ठ ४६१ से ४६३ तक ।
साध्वी ने अभङ्गदुवार रहिवो कल्पे नहीं साधु ने कल्पे ( वृ० क० उ० १ इति श्री जयाचार्य कृते भ्रमविध्वंसने कपाटाऽधिकारानुक्रमणिका समाप्ता । इत्यनुक्रमणिका ।