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भ्रम विध्वंसनम् ।
तपस्वी नी आश्रय । बीजो भांगो शील क्रिया रहित अने ज्ञान शक्ति सहित ए अती सम्यग्दृष्टि ते देश विराधक ते दूजो भांगो । ज्ञान अने शील क्रिया सहित साधु सर्वत्र सर्व आराधक ए तीजो भांगो । अने ज्ञान क्रिया रहित अत्रती बाल पापी ए सर्वविराधक चौथो भांगो। इहां प्रथम भांगा में ज्ञान सम्यक्त्व रहित शील क्रिया सहित ते बाल तपस्वी ने भगवन्ते देश अराधक को है । अने केतला एक अजाण मिथ्यात्वी नी शुद्ध करणी ने आज्ञा वाहिरे कहे छै । ते करणी थी एकान्त संसार बनतो कहै छै एकान्त झूठ रा बोलणहार छै । जो मिथ्यात्वी री शुद्ध भली निरवय करणी आज्ञा बाहिरे हुवे तो वीतराग देव मिथ्या दृष्टि बाल तपस्वी ने देश अराधक क्यूं कह्यो । ए तो प्रत्यक्ष पहिला गुणठाणा वाला नों प्रथम भांगो ते बाल तपस्वी ने देशभराधक कह्यो । ते लेखे तेहनी शुद्ध करणी आज्ञा मांहि छै ते करणी निरवद्य छै । तिवारे कोई कहे ते मिथ्या दृष्टि बाल तपस्वी रे संवर वर्ततो तो किञ्चित् मात्र नहीं तो व्रत बिना देशआराधक किम हुवे ।
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इम पूछे तेहनो उत्तर - व्रती ने तो सर्व आराधक कहीजे । अनें ए बाल तपस्वी ने व्रत नहीं पिण निर्जरा रे लेखे देशआराधक कह्या छै । ए करणी थी घणी कर्मानी निर्जरा हुवे छै । इम घणी २ कर्मा नी निर्जरा करतां घणा जीव सम्यग्दृष्टि पाय मुक्ति गामी थया छै । तामलीतापस ६० हजार वर्ष ताई वेले २ तपस्या कीधी तेही घणा कर्म क्षय किया । पछे सम्यग्दृष्टि पाय मुक्तिगामी एकावतरी थयो । जो ए तपस्या न करतो तो कर्मक्षय न हुन्ता. ते कर्मानी निर्जरा विना सम्यग्दृष्टि किस पावतो । अनें एकावतारी किम हुन्तो । वली पूरण तापस १२ वर्ष वेले २ तप करी घणा कर्म खपाया चमरेन्द्र थयो सम्यग्दृष्टि पामी एकावतरी थयो । इत्यादिक घणा जीव मिथ्यात्वी थका शुद्ध करणी थकी कर्म खपाया ते करणी शुद्ध छै । मोक्षनो मार्ग छै । ते लेखे भगवन्त देश अराधक को छै । तिवारे कोई अज्ञानी जीव इम कहे एतो देश आराधक को छै । ते मिध्यात्वीरी करणी से देश आराधक कह्यो छै, पिण मोक्ष मार्ग रो देश आराधक नहीं । तेहनो उत्तर—जो ए प्रथम भांगावाला बाल तपस्वी ने देश आराधक मुक्ति मार्ग नो न का तो बाकी तीन भांगा में अग्रती सम्यग्दृष्टि ने देश विराधक कह्या, ते पिण तेही करणी से कहिणो । मोक्ष मार्ग रो विराधक न कहिणो । अनें तीजे भांगे साधु ने सर्व आराधक को पिण तिण रे लेखे मोक्ष मार्ग रो सर्व
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