________________
मिथधात्वि क्रियाऽधिकारः।
कई अज्ञानी इम कहे । मिथ्यात्वी ने एकान्त वाल कह्यो। जो तेहनी करणी आहामाही होवे तो तेहने एकान्त वाल क्यूं कह्यो । तत्रोत्तर --जो एकान्त बालनी करणी आज्ञा वाहिरे हुवे तो अव्रती सम्यगदृष्टि ने पिण एकान्त बाल कहीजे भगवती श० ८ उ० ८ एकान्त वाल एकान्त पंडित अने वाल पंडित ए तीन भेद समचे कया छ। तिहां संसार रा सर्व जीव तेह तीन भेदां में विचार लेवा । एकान्त पंडित ते साधु छठा गुण ठाणा थी चौदमा ताई सर्व व्रत माटे एकान्त पंडित । एलान्त बाल पहिला गुण ठाणा थी चौथा गुण ठाणा सुधी सर्वथा अव्रत माटे एकान्त वाल । बाल पण्डित ते श्रावक पांचमे गुण ठाणे कांयतो ब्रत कायक भात ते भणो वाल पण्डित। इहां बाल नाम मिथ्यात्व नो नहीं, वाल नाम मिथ्यात्वनो हुवे सो श्रावकने बाल पण्डित कह्यां माटे श्रावकरे पिण मिथ्यात्व हुवे । मने श्रावक रे मिथयात्व री क्रिया भगवन्ते सर्वथा प्रकारे वर्जी छै । ते भणी बाल नाम मिथयात्व नो नहीं । ए बाल नाम अत्रत नो छै। अने पण्डित नाम व्रत नो छ। ते एकान्त वाल तो चौथा गुण ठाणा सुधी छै। तिहां किञ्चिन्मात्र व्रत नहीं छ। ते भणी सम्यगद्रष्टि चौथा गुण ठाणा रा धणो ने पिण एकान्त बाल कहोजे । जो एकान्त बालनो करणी आज्ञा बाहिरे कहे तिणरे लेखे अव्रती शीलादिक पाले सुपात्र दान तप साधां ने बन्दनादिक भली करणी करे, ते सर्व करणी आशा वाहिरे कहिणो । एकान्त बाल कह्या ते तो किश्चिन्मात्र व्रत नहीं ते आश्रय कया, पिण करणी आश्रय एकान्त बाल न कह्या छै । करणी आश्रय बाल कहें ते महा मूर्ख जाणवा । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति ६ बोल सम्पूर्ण।
केतला एक इम कहे-जे अन्य मती मास २ क्षमण तप करे, ते सम्यगदृष्टि रा धर्म रे सोलमी कला पिण न आवे । श्री भगन्ते इम कह्यो छ । ते भणी ते मिथयात्वी नी करणी सर्व आज्ञा वाहिरे छै । ते गाथा न्याय सहित