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भ्रम विध्वंसनम् ।
मासे मासे तुजो वालो कुसग्गेणं तु भुंजए । न सो सुयक्खाय धम्मस्स कलं अन्यइ सोलसिं॥
( उत्तराध्ययन. अध्ययन गाथा ४४ )
मा० मासे मासे निश्चय निरन्तर. जो कोई बाल अविवेकी. कु. डाभ ने अग्रे भावे सेतलाज भन्न नो पारणो. भु० भोगधे करे तोही पिण. न० नहीं. सो० ते अज्ञानी नो तप. सु० भलू तीर्थकरादिके-भ० पारव्यातो कह्यो सर्व प्रत रूप चारित्र. ध० जे धर्म ने पासे क० कलायें अर्धे नहीं सोलमी ए ।
अथ इहां तो मिथयात्वी नो मास २ क्षमण तप सम्यग्दृष्टि ना चारित्र धर्म ने सोलमी कला न आवे एहवू कह्यो छै। ते चारित्र धर्म तो संवर छै तेहने सोलमी कलाई न आवे कयो। ते सोलमी कला नो इज नाम लेइ वतायो । पिण हजारमें इ भाग न आवे । तेहने संवर धर्म छै इज नथी । पिण निर्जरा धर्म आश्रय कह्यो नथी। तिवारे कोई कहै ए मिथयात्वी नो मास क्षमण सम्यग्दृष्टि रा निर्जरा धर्म ने सोलमे भाग नथो । इम निर्जरा धर्म आश्रय कह्यो छै। तो तिण रे लेखे सम्यग्दृष्टि रा निर्जरा धर्म रे सोलमे भाग न आवे । तो सतरमे भाग तो भावे । जो सम्यग्दृष्टि रा धर्म रे सतरमे भाग तेहना मास क्षमण हुवे तो तिणरे लेखे पिण आज्ञा में ठहर गयो । पिण एतो संवर चारित्र धर्म आश्रय कह्यो छ । ते चारित्र धर्म रे कोडमें ही भाग न आवे । पिण सोलमा रो इज नाम लेइ बतायो छै । वली उत्तराध्ययन री अवचूरी में पिण चारित्र धर्म रे सोलमे भाग न आवे इम कह्यो । पिण निर्जरा धर्म आश्रय न कह्यो । ते अवचूरी लिखिये छै ।
"न इति निषेधे स एवंविध कष्टानुयायी। सुष्टुः शोभनः सर्व सावध विराति रूपत्वा दाख्यातो जिनः स्वाख्यातो धर्मो यस्य स तथा तस्य चारित्रण इत्यर्थः कला भागम्-अर्घति अर्हति षोडशी ।" ।
इहां अवचूरी में पिण इम कह्यो। मिथयात्वी नो मास क्षमण तप चारित्र धर्म सर्व सावद्य ना त्याग रूप धर्म ने सोलमी कला पिण न आवे । पिण निर्जरा आश्रय न कह्यो । जे मिथयात्वी मास २ क्षमण करे। पिण तेहने चारित्र धर्म