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भ्रम विध्वंसनम् ।
इहां श्री भगबन्ते इम कह्यो। हे मेघ ! ते तिर्यञ्च रे भवे तो “अपडिलद्ध" कहितां न लाध्यो “समत्त रयणं" कहिता सम्यक्त्व रत्न नों “लभेण" कहता लाभ । यहां तो चौड़े सम्यक्त्व वजी छै। ते माटे ते हाथी मिथ्यात्वो थके दया थो परीत संसार कियो। ते करणी शुद्ध छ । निरवद्य निर्दोष आज्ञा माहिली छ। केइ एक अजाण “अपडिलद्ध समत्तरयण लभेणं" ए पाठ नो ऊधो अर्थ करें छ। ते पाठ ना मरोडण हार छै। वली त्यांमें इज * दलपत रायजो प्रश्न पूछ्या तेहना उत्तर दौलतरामजी दीधा छ। ते प्रश्नोत्तर मध्ये पिण हाथी ने तथा सुमुख गाथापति ने प्रथम गुण ठाणे कह्या छै। वली ते प्रश्नोत्तर मध्ये दलपतराय जी पूछयो । “अपडिलद्ध सम्मत्तरयण लंभेणं" ए पाठ नो अर्थ स्यूं, तिवारे तेणे दौलतरामजी अर्थ इम कियो । “अपडिलद्ध" कहतां न लाध्यो “समत्तरयण लंभेणं" कहतां सम्यक्त्व रत्न रो लाभ, एहवो अर्थ कियो छै । ते अर्थ शुद्ध छ। के बिपरीत अर्थ करे ते एकान्त मृषावादी छै। तिवारे कोई इम कहै तुमे ए दौलतराम जी रो शरणो किम लेवो छो । तुम्हें तो तिण दौलतरामजी ने मानो नहीं। ते माटे तेहनी नाम किम लेवो । तेहनो उत्तर-भगवती शतक १८ उ० १० कह्यो । जे सोमल ब्राह्मण श्री महावीर ने पूछ्यो, हे भगवन् ! सरिसव ( सर्षप ) भक्ष्य के अभक्ष्य तिवारे भगवान् बोल्या। “से गणं भे सोमिला बम्हण ! एसु दुविहा सरिसवा प० तं मित्त सरिसवाय. धण्ण सरिसवाय" एहनो अर्थ- “सेणूणं" कहितांते निश्चय करि “भे" कहतां तुम्हारा “वम्हण" कहतां ब्राह्मण संबंधिया शास्त्र ने विषे सरिसबना बे भेद प्ररूप्या । इहां भगवान् कह्यो, हे सोमिल ! तुम्हारा ब्राह्मण संबन्धिया शास्त्र ने विषे सरिसबना दो भेद कह्या। मित्र सरिसव-धान सरिसव पछे तेहना भेद कह्या, इम मासा कुलथारा पिण भेद तेहना शास्त्र नो नाम लेइ बताया तो तेणे श्री महावीरे ते ब्राह्मण नो मत मान्यो नथी । पिण तेहमा शास्त्र थी बताया, ते अनेरा ने समझावा भणो । तिम इहां दौलतरामजी रो नाम लेइ पाठरो अर्थ बतायो। ते पिण तेहनी श्रद्धा वालांने समझावा भणी। अने जे
ॐ ये दलपतरायजी. और दौलतरामजी. कोटाबन्दीके आसपास बिचरने वाले बाइस सम्प्रदायके साधु थे। इनर्की बनाई हुई १ प्रश्नोत्तरी है। उसका हो यह १३८ वा प्रश्न है। पूर्ण तया ये विदित नहीं है कि ये प्रश्नोत्तरी छपी हुई है वा नहीं।
“संशोधक"