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(अनुक्रमणिका [१] आड़ाई : रूठना : त्रागा वीतरागता की अनोखी रीत समझने जैसी बात 'ज्ञानी' की १ 'वीतराग,' फिर भी 'खटपट' सीधा तो होना ही पड़ेगा न? २ उसे कहते हैं त्रागा आड़ाई कबूल करने से, होगी.... ३ वह त्रागा नहीं कहलाता आड़ाई, कॉमन : अन्कॉमन ४ ऐसे को दूर से ही नमस्कार आड़ाईयाँ, स्त्री-पुरुष मे
४ त्रागा के परिणाम देखना है, खुद को खुद का ही
५ त्रागा करने वाले के सामने आड़ाई छूटते ही...
६ वह तो टुच्चापन है बाधक मात्र आड़ाईयाँ ही
७ तायफा के सामने आड़ाई का स्वरूप
८ इस तरीके से भी मतभेद टाला समझने से सरलता
९ त्रागा भी एक कला मोक्षमार्ग का राहखर्च
१० वहाँ समझदारी से चेत गए बचपन की आड़ाईयाँ
१२ उसे त्रागा भारी पड़ा अहंकार के आधार पर
१५ प्रकृति में ही गुथा हुआ । 'नहीं हो पा रहा' ऐसा नहीं... १६ त्रागे वाले से सावधान रहेंगे यह ज्ञान ही वर्तना में
१७ बचने का ‘एडजस्टमेन्ट' आड़ाईयाँ हर एक की अलग १७ [२] उद्वेग : शंका : नोंध वे आड़ाईयाँ, अंत वाली १८ उद्वेग के सामने सरल फिर भी सूक्ष्म आड़ाईयाँ १८ धारणा नहीं, तो उद्वेग नहीं वहाँ पर तो हमें सावधान.... १९ वेग, आवेग और उद्वेग उसे 'ज्ञानी' ही सीधा करें २० उद्वेग, कितनी मुश्किल! सरलता से राजीपा प्राप्त २० उन परिबलों से दूर चले जाओ नाटकीय अहंकार
२१ बुद्धि ही लाती है उद्वेग वे आड़ाईयाँ 'जानने' से जाएँगी २२ जिसे उद्वेग होता है, खुद वह... ऐसा नहीं होना चाहिए
२४ शंका की जड़ 'टेढ़ा', वह 'खुद' नहीं है २५ संशयात्मा विनश्यति ऐसा है यह 'अक्रम विज्ञान' २६ शंका अलग, जिज्ञासा अलग रूठ गए? तो 'गाड़ी'... २७ भक्तों के लिए तो... उसमें नुकसान किसे?
२९ रखना, वहम का इलाज फिर नहीं रूठे कभी भी ३१ वह तो परमाणुओं के अनुसार 'रिसाल' ही रूठे हुए को.... ३१ प्रेजुडिस परिणामित शंका में
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