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ज्ञानीपुरुष के दोष नहीं देखने चाहिए। भूल नहीं निकालनी चाहिए। उनकी नौ बातें समझ में आएँ और एक समझ में नहीं आए तो उसे एक ओर रखकर 'वेट एन्ड वॉच' करना। वह फिर अपने आप ही समझ में आएगा।
१. पोतापणुं : परमात्मा ज्ञानीपुरुष पूरे जगत् के साथ अभेद रहते हैं। किसी के साथ भी जुदाई नहीं रहती। ज्ञानीपुरुष में बुद्धि होगी, तब भेद पड़ेगा न! अबुध तो अभेद रहते हैं विश्व के संग!
अभेदता ज्ञान को पुष्टि देती है। जुदाई से शक्तियाँ छिन्नभिन्न हो जाती हैं। जिसका पोतापणं (मैं हूँ और मेरा है, ऐसा आरोपण, मेरापन) चला जाता है, उसकी जुदाई चली जाती है, वह सब के साथ अभेद हो जाता है।
ए. एम. पटेल ने मेरापन छोड़कर भगवान को समर्पित कर दिया है। जिसका मेरापन गया वह भगवान के साथ अभेद हो गया, ऐसा समझना।
ज्ञानीपुरुष के पोतापणां का उन्मूलन हो चुका होता है। संपूर्ण संयोगाधीन बरतते हैं, निरअहंकारी रूप से, पोटली की तरह जहाँ जाना पड़े, वहाँ जाते हैं ! पोतापणुं छूटने के बाद सहज रहा जा सकता है। खुद का कोई मत ही नहीं रहता उनका। फिर भी उनका व्यवहार संपूर्ण आदर्श होता है। पूरे दिन वे ड्रामेटिक ही रहते हैं। जिसका पोतापणुं जाए, वही ड्रामेटिक रह सकता है।
प्रकृति का रक्षण करना, वह पोतापणुं कहलाता है। कपट करके प्रकृति का रक्षण करना, उसे गाढ़ पोतापणुं कहते हैं।
__ जिसका पोतापणुं जा चुका है, उसकी क्या परीक्षा है ? नौ बार गाडी में से उतार दिया जाए और नौ बार वापस बुलाया जाए, लेकिन तब भी चेहरे पर ज़रा सा भी बदलाव नहीं हो! 'व्यवस्थित' का ज्ञान पोतापणुं छुड़वाता है।
ज्ञानीपुरुष के अलावा सभी में पोतापणुं होता है। पोतापणुं जाए तो वह भगवान बन जाए!
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