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अनेकान्त
और राष्ट्रकूट राज्यका एकछत्र अधिपति श्रीवल्लभ कलिबलमधारावर्ष भद उपाधिभारी प्रवराज निरुपम था । " यथार्थत धूलियाके ताम्रपटोंमें तो यह स्पष्ट उल्लेख है कि उस समय अर्थात शक सं० ७०१ में गोविन्द द्वितीयका अनेकरने यह अवश्य बतलाया है कि श्रीवल्लभ उपाधि ध.वराजकी भी पाई जाती है और वह भी कृष्णका पुत्र था जिनमेन द्वारा उत श्रीभगोविन्द भी हो सकते हैं और ध्रुव भी" जन का निजी माल यह भी है कि इस समय ध्रुवको राजा मानना ठीक होगा । किन्तु इसके लिये हेतु सिवाय इसके और कुछ नहीं दिया जामका कि यदि ध्रुवका राज्यारोहया ७८३ ई० के भी पश्चात् माना जाय तो उनके राज्यके लिये केवल लगभग आठ वर्ष ही शेष रह जाते हैं, जब कि उनकी अनेक विजयोंसे 'जान पड़ता है कि उनका राज्य कुछ अधिक रहा होगा। इस हेतुमें न तो कोई बल है और न इस बातका कोई भी प्रमाण उपलब्ध है कि गोविन्द द्वितीयका रज्य शक ७०५ मे पूर्व समाप्त होचुका था । यदि ध्रुवका राज्यारोहण राग ७०५ व ७०६ में भी माना जावे तो भी उनके राज्यकं दश वर्ष प्राप्त होते हैं क्योंकि उनका उल्लेख शक ७१५-१६ तक पाया जाता है और उनके पुत्र जगत्सँगका प्रथम ताम्रपत्र शक ७१६ का प्राप्त होता है।
६. “In the Dhulia plates of 779 A. D.
We find that Govinda II is men* tioned as the ruling Emperor". (Altekar The Rashtrakutas and their times, P.501.n.) ७. “Since srivallabha was thus the
epithet of both Govinda II and his immediate successor Dhruva, Srivallabha mentioned by Jinasena as ruling in 783 A. D. can be either. Govinda or Dhruva".
(Alterbar: The R. T., P. 53,) . "Dhruva was living when the Daultabad plates were issued in April 793 and dead when the Paithan plates were issued by his son. in may 794 A. D."
(Altekar R. T. P.59)
[ वर्ष म
किन्तु यदि यह मान भी लिया जाय कि हरिवंश पुरायका वह उल्लेख भुवराजका ही सूचक है तो इससे केवल इतना ही अनुमान होसकता है कि शक संवत् ७०५ के लगभग ध्रुवराज सिंहासनारूढ हुए थे । किन्तु इससे दो वर्ष पूर्व ही शक संवत् ००३ में उनके पुत्र जगचुँगदेवके राज्य होनेकी तो कोई संभावना ही नहीं पाई जाती। यह बात सच है कि प्रवराजने अपने जीवनकाल में ही अपने ज्येष्ठ पुत्रोंको छोड़ कनिष्ठ पुत्र गोविन्दराजको युवराज बनाया था और उसका अभिषेक भी अपने जीते जी कर देनेका प्रयत्न किया था । किन्तु जैसा कि डा० श्रस्तेकरने इस विषयका खूब ऊहापोह करके कहा है? एक तो अभी तके उपलब्ध प्रमाणोंपर से यह निर्णय करना ही कठिन है कि क्या सचमुच बने अपने जीते जी अपने पुत्रका राज्याभिषेक कर दिया था और दूसरे यदि यह ठीक भी हो तो यह बात उसके राज्यके अन्तिम कालमें अर्थात् शक सं० ०१२ के लगभग ही घटित हो सकती है न कि राज्यके प्रारम्भमें व उससे भी पूर्व शक ७०३ में ही ।
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जगसंग गोविन्द तृतीयका कोई उल्लेख राजाके रूप में शक सं० ७१६ से पूर्वका न किसी ताम्रपटमें पाया जाता है और न किसी अन्य में इससे ११-१२ वर्ष पूर्व शक [सं० ७०५में उनके पिता ध्रुवराज के भी सिंहासनारूड होनेका निश्चय नहीं है। तब शक संवत् ७०३ (वि० सं० ८३८) में वीरसेनद्वारा जगत्तुंगदेव के राज्यका उल्लेख किया जाना सर्वथा असंभव प्रतीत होता है जब तक इस एक प्रधान बात के प्रबल ऐतिहासिक प्रमाण प्रस्तुत न किये जायँ तब तक बा० ज्योतिप्रसादजीकी शेष कल्पनाओंके विचार में समय व शक्ति लगाना निष्फल है।
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2. "In the present state of knowledge,
therefore, it is difficult to decide whether Dhruva had actually abdicated towards the end of his career it may, however, be safely assumed. that Govinda was the defacto ruler in full charge of the administration when his father died."
(Altekar: R. T., P. 61.)