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श्रीधवलका रचनाकाल (लेखक-श्री प्रफुलकुमार मोदी, एम० ए०, एल-एल• बी० )
XXX खंडागम पुस्तक की प्रस्तावनामें मेरे कृष्ण के पुत्र श्रीवलमका राज्य था । र ष्टकूटनरेश कृष्णप्रथम
पिताजी प्रो. डाक्टर हीरावाखजीने विशेष के ज्येष्ठपुत्र गोविन्द द्वितीयकी उपाधि श्रीवल्लभ पाई जाती
खोजबीन पूर्वक पवसा टीकाकी अन्तिम और अपने पिताके पश्चात राज्यारोहणकाल शक सं. XXX
प्रशस्तिका पाठ संशोधन करके यह निर्णय ६६४केबगभग बिद्ध होता है। सर भंडारकरने अपने मन्दा किया है कि उस प्रशस्तिमें कार्तिक शुक्ल दक्षिणके इतिहास में जिनसेनका उक्त उपख इन्हींक
१ शक संवत् ७३८ का उल्लेख है। सम्बन्ध में स्वीकार किया है, और विश्वेश्वरनाथ रेउने
किन्तु अनेकान्तकी वर्ष ७ किरण ११-१२ अपने भारत के प्राचीन राजवंशमें यही मत स्वीकार किया (जून-जुखाई, ४) अंकमें बा. ज्योतिप्रसाद जैनका इस प्रकार विक्रम सं०८३८ शक सं०.०३ में तो 'श्रीधवन का समय' शीर्षक लेख प्रकाशित हुआ है। अगत्तैग ही नहीं, किन्तु उसके पिता घबरानका भी राज्य जिसमें उक्त प्रशस्तिके पाठमें कुछ दूसरे प्रकारसे संशोधन नहीं पाया जाता। बा. ज्योतिप्रमादजीका यह कथन सर्वथा करके या प्रतिपादित किया गया है कि उस प्रशस्तिमें असत्य है कि पुखियाके ताम्रपटमे "इसमें तो सन्देह नहीं विक्रम संवत् ३८ कार्तिक शुक्ल १३ का उल्लेख है। किगोबिन्द द्वितीयकी मृत्यु ०७१-८० में हो चुको था इस लेख में प्रस्तुत अनेक बात ऐतिहासिक राष्टिसे विशेष ... ---- चिम्तनीय हैं । किन्तु उनकी चिन्ता करना तब तक निष्फल २ देखा पठनका ताम्रपत्र (ए. इ. ३ पृ. १०५) है जब तक कि यह सिद्ध न होजाय कि विक्रर सं०८३८ ३. “Krishna I was succeeded by his भी धवखाकी समाप्तिके लिये संभव माना जा सकता। eldest son Govinda Prabhutavarsha
Vikramavaloka soon after 772 उक्त प्रशस्तिके उपजम्य अशुद्ध पाठके कारण संवत्
A. D." प्रादि सम्बन्ध में भले ही मतभेद और संशय हो, किन्तु
(Altekar: The Rashtrakutas and इस बातमें कोई संशय व मतभेद नहीं है कि उसमें राजा
their t mes; P. 45.) जगत्तंगदेबका खेल कूट वंश जगतंग उपाधि
8. "Govinda II, therefore, must be the भारी अनेक राजामों में सबसे प्रथम गोविन्द तृतीय पाये
prince alluded to, and he appears जाते हैं जिनके शक संवत् १६ से लगाकर ०३५ तक
thus to have been on the throne in ताम्रपट मिले हैं। इनके पिता ध्र वराजका राज्यकाल शक
Saka year 705 or A. D. 783." ७१ तक पाया जाता है, और ध्र वसे पूर्ववर्ती राजा
(Bhand: The Earby History of the Deccan. P. 89। गोविन्द द्वितीयका अन्तिम उल्लेख शक ७.1 का मिलता ....
मलता ५ "इसमे प्रतीत होता है कि श०सं० ७०५ (व० सं० है। किन्तु इस बातका अमीतक निर्णय नहीं हो सका कि
८४०) तक भी गोविन्दराज द्वितीय हो गज्यका गोविन्द द्वितीयका राज्यकाल का समाप्त हुश्रा और ध्रुव
स्वामी था क्योंकि कावी और पैठनक ताम्रपत्रों में का का प्रारंभ हुा । जिनसेनकृत हरिवंशपुरावकी
पता चलता है कि गोविन्द द्वितीयकी उपाधि वल्लभ' प्रशस्ति में सक्लेख है कि शक संवत् ७०१ में दक्षिण में
और इसके छोटे भाई ध्र वराजको उपाधि १ शाकेष्वन्दशतेषु समसु दिशं पंचोत्तरेषुत्तरां । 'कलिवल्लभ' थी।" पातीन्द्रायुधनाम्नि कृष्ण नृपजे श्रीवल्लभे दक्षिणाम् ।।
(रेऊ : भा. प्रा. रा भा. ३ पृ० ३३-३४)