________________
समय-
॥२३॥
आपने ज्ञान स्वभावते नहि चले तातै अचल है आदि रहित है तातै अनादि है अनंत गुणसहित है 5 तातै अनंत है शाश्वत है तातै नित.है, ऐसा जीव है सो जगतमें प्रत्यक्ष प्रगट है प्रमाण है ॥ १० ॥
॥ अब अनुभव विधान कथन ॥ सवैया ३१ सा ॥रूप रसवंत मुरतीक एक पुदगल, रूपविन और यौं अजीव द्रव्य द्विधा है ।। च्यार हैं अमूरतिक जीवभी अमूरतिक, याहितें अमूरतिक वस्तु ध्यान मुधा है।
औरसों न कबहू प्रगट आपआपहीसों, ऐसो थिर चेतन खभाव शुद्ध सुधा है ॥ . .
चेतनको अनुभौ आराधे जग तेई जीव, जिन्हके अखंड रस चाखवेकी क्षुधा है ॥ ११ ॥ ___ अर्थ-पुद्गलद्रव्य है सो रूप रस गंध अर वर्ण युक्त है ताते एक पुद्गलद्रव्य मूर्तीक (रूपी ) है, 2 अर चार पुद्गलद्रव्ये (धर्म, अधर्म, आकाश, काल,) है सो रूपादि रहित अमूर्तीक है ऐसे अजीवद्रव्य मूर्तीक अर अमूर्तीक दोय प्रकारे है । च्यार पुद्गलद्रव्ये अमूर्तीक है अर जीवद्रव्यभी अमूर्तीक है, परंतु अमूर्तीक पुद्गल (अजीवद्रव्य) का ध्यान वृथा है। कारण अन्य द्रव्यके अवलंबनसे आत्मरूप है प्रगट नहि होय है आपते आप प्रगट होय है ऐसा स्थिर चैतन्य स्वभाव है सोही शुद्ध अमृत है सो । अमृत रस चैतन्यको प्रगट करे है। इस जगतमें तेही जीव चैतन्यके अनुभव ( यथार्थज्ञान) की आराधना करे है जिनिकै अखंड रस (आत्म रस ) आस्वादन करनेकी क्षुधा है ते ॥११॥
॥ अब मूढ स्वभाव वर्णन ॥ सवैया २३ सा ॥चेतन जीव अजीव अचेतन, लक्षण भेद उभै पद न्यारे ॥ सम्यक्दृष्टि उदोत विचक्षण, भिन्न लखे लखिके निरवारे ॥
ॐ ॥२३॥