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॥ अब पहिले, दुसरे अर तिसरे प्रतिमाका स्वरूप कहे है ॥ दोहा ॥संयम अंश जगे जहां, भोग अरुचि परिणाम । उदै प्रतिज्ञाको भयो, प्रतिमा ताका नाम ॥५७॥ आठमूल गुण संग्रहे,कु व्यसन क्रिया नहि होय । दर्शन गुण निर्मल करे, दर्शन प्रतिमा सोय॥५०॥ पंच अणुव्रत आदरे, तीन गुण व्रत पाल । शिक्षाबत चारों घरे, यह व्रत प्रतिमा चाल ॥५९॥ द्रव्य भाव विधि संयुकत, हिये प्रतिज्ञा टेक । तजि ममता समता गहे, अंतर्मुहूरत एक ॥६॥
चौ०-जो अरि मित्र समान विचारे । आरत रौद्र कुध्यान निवारे ॥
' संयम संहित भावना भावे । सो सामाइकवंत कहावे ॥ ६॥ MR अर्थ-जहां संयमका अंश जगे अर भोगमें अरुचिके परिणाम हुवे। तहां कोई प्रतिज्ञा धारण
करनेका उदय होय सो तिसका नाम प्रतिमा है ॥ ५७ ॥ जो आठ मूल गुण धारण करे अर सप्त व्यसनकी क्रिया नही होय । ऐसे सम्यक्त गुण निर्मल करे सो पहली दर्शन प्रतिमा है ॥ १॥ ५८ ॥ जो पांच अणुव्रत, तीन गुण व्रत, अर चार शिक्षा व्रत धारण करे । सो दूजी व्रत प्रतिमा है ॥२॥१९॥ जो चित्तमें प्रतिज्ञा करके अंतर्मुहूर्त पर्यंत द्रव्य (देह अर वचन ) स्थिर करे अर भाव ( मन )स्थिर wil. || करे । तथा ममताळू त्यागि समता धारण करके ॥६० ॥ शत्रू मित्रकू समान गिणे अर रौद्र ध्यान त्याग करे । तथा संयम सहित बारह भावनाका चितवन करे सो तीजी सामायिक प्रतिमा है ॥३॥६॥
॥ अव चौथे पांचवे अर छठे प्रतिमाका स्वरूप कहे है ॥ दोहा॥सामायिककी दशा, चार पहरलों होय । अथवा आठ पहरलों, पोसह प्रतिमा सोय ॥ ६२ ॥ जो सचित्त भोजन तजे, पीवे प्रासुक नीर । सो सचित त्यागि पुरुष, पंच प्रतिज्ञा गीर ॥३॥
AARA लम्बा करत