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समय-, जाणे है सो महान महिमावंत है, तिसके पुरुषार्थकी कीर्ति अर कथा अनादिकालसे चालती आवे है सार.
र अर ऐसेही अनंत काल पर्यंत रहेगी ॥ ४८ ॥ इति साधक स्वरूप ॥ .. .. ..: . ॥ अव साध्यका स्वरूप कहे है ॥ सवैया ३१ सा॥- . . .
पंच परकार ज्ञानावरणको नाश करि, प्रगति प्रसिद्ध जग मांहि जगमगी है ॥ ज्ञायक प्रभामें नाना ज्ञेयकी अवस्था धरि, अनेक भई पैं एकताके रस पगी है ॥
याहि भांति रहेगी अनादिकाल परयंत, अनंत शकति फेरि अनंतसो लगी है। __. नर देह देवलमें केवल वरूप शुद्ध, ऐसी ज्ञानज्योतिकी सिखा समाधि जगी है ॥४९॥ है
अर्थ-मोक्षका साधक है सो जब पंच प्रकार ज्ञानावरणी कर्मका नाश करें है, तब तिसळू प्रसिद्ध है केवलज्ञान [ साध्य अवस्था ] प्राप्त होयके तिसके प्रकाशमें जगत झगमगे है। सो ज्ञायक प्रकाश ॐ जगतके नाना प्रकार ज्ञेयकी अवस्था धरि अनेक रूप होय है, तथापि जाननेका स्वभाव नहि छोडे है। ६ ऐसेही अनंतकाल पर्यंत रहे है, अर अनंत शक्ति धारण करि अनंत अवस्था पर्यंत रहसे। ऐसे मनुष्यके % देहरूप देवलमें शुद्ध केवलज्ञानरूप ज्योतीकी शिखासमाधि प्राप्त होय है ॥४९॥ इति साध्य स्वरूप ॥ . . ॥ अव अमृतचंद्र कलाके तीन अर्थ कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥
अक्षर अरथमें मगन रहे सदा काल, महा सुख देवा जैसी सेवा काम गविकी ॥ अमल अबाधित अलख गुण गावना है, पावना परम शुद्ध भावना है भविकी॥ मिथ्यात तिमिर अपहारा वर्धमान धारा, जैसे उभै जामलों किरण दीपे रविकी। ,
हैं ॥१२९॥ ऐसी है अमृतचंद्र कला त्रिधारूप धरे। अनुभव दशा ग्रंथ टीका बुद्धि कविकी ॥५०॥
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