________________
समय
॥१३७॥
क्षय उपशमं करे । सातई प्रकृति जाके उदै, सो वेदक समकित धरे ॥ ४२ ॥ अर्थ —- ऊपर के कवित्तमें कही है तिस मोहनीय के सात प्रकृतीका उपशम जिसके होय सो उपशम सम्यक्त है । अर सात प्रकृतीका क्षय करे सो क्षायक सम्यक्त अक्षय है । अर सात प्रकृतीमें कछु प्रकृतीका क्षय अर कछु प्रकृतीका उपशम कर राखे है । सो क्षयोपशम सम्यक्त है ते मिश्ररूप सम्यक्तंके रसकूं आस्वादे है । अर छह प्रकृतीका उपशप करे अथवा क्षय करें अथवा क्षयोपशम करे अर एक प्रकृतीका उदय होय सो वेदक सम्यक्त है ॥ ४२ ॥
॥ अव सम्यक्तके नव भेद है सो कहे है ॥ दोहा ॥ सोरठा ॥
क्षयोपशम वर्ते त्रिविधि, वेदक चार प्रकार | क्षायक उपशम जुगल युत, नौधा समकित धार ॥ ४३ ॥ चार क्षपेत्र उपशमे, पण क्षय उपशम दोय । क्षै पट् उपशम एकयों, क्षयोपशम त्रिक होय ॥४४॥ जहां चार प्रकृति क्षपे, द्वै उपशम इक वेद । क्षयोपशम वेदक दशा, तासु प्रथम यह भेद ॥ ४५ ॥ पंच क्षपे इक उपशमे, इक वेदे जिह ठगेर । सो क्षयोपशम वेदकी, दशा दुतिय यह और ||१६|| क्षय षट् वेदे इक जो, क्षायक वेदक सोय, । पर उपशम इकविदे, उपशम वेदक होय ॥४७॥
अर्थ — क्षयोपशम सम्यक्तके तीन भेद, वेदक सम्यक्तके चार भेद, क्षायक सम्यक्तका एक भेद अर उपशम सम्यक्तका एक भेद, ऐसे सम्यक्तके नव भेद है ॥ ४३ ॥ अत्र क्षयोपशमके तीन भेद कहे है-अनंतानुबंधीकी चार प्रकृति क्षय करे अर दर्शन मोहकी तीन प्रकृती उपर्शम करे सो प्रथम क्षयोपशम सम्यक्त है ॥ १॥ अनंतानुबंधीकी चार अर मिथ्यात्वकी एक ऐसे पांच प्रकृतीका क्षय करे अर दर्शन मोहके दोय प्रकृतीका उपशम करे सो द्वितीय क्षयोपशम सम्यक्त है ॥ २ ॥ अनंतानुबंधकी चार
सार.
अ० १३
॥१३७॥