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समय
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॥ अव बंधका मूल आश्रव है अर मोक्षका मूल संवर है सो कहै है ॥ दोहा ॥ - चौदह गुणस्थानक दशा, जगवासी जिय भूल। आश्रव संवर भाव है, बंध मोक्षको मूल ॥११०॥
अर्थ — जगतवासी जीव अशुद्धता ( अज्ञानता ) से भूलमें पड्यो है तिसकी ए चौदह गुणस्थानकी चौदह दशा होय है, यहां तत्व दृष्टीसे देखेतो आश्रव है सो बंधका मूल है अर संवर है सो मोक्षका मूल है ॥ ११०॥
॥ अव आश्रवकी अर संवरकी जुदी जुदी व्यवस्था कहे है | चौपई ॥ - आश्रव संवर परणति जोलों । जगवासी चेतन तोलों ॥ आश्रव संवर विधि व्यवहारा । दोउ भवपथ शिवपथ धारा ॥ १११ ॥ आश्रवरूप बंध उतपाता । संवर ज्ञान मोक्ष पद दाता ॥ जा संवरसों आश्रव छीजे । ताकों नमस्कार अब कीजे ॥
११२ ॥
अर्थ — जबतक आश्रवके अर संवरके परिणाम परिणमे है तबतक चेतनरूप ईश्वर जगत निवासी होय रहे है । यहां आश्रवका विधि है सो व्यवहारमें है अर संवरका विधि है सो पण व्यवहार में है, ये दोय व्यवहार मार्ग है - आश्रव विधि है सो संसारमार्गकी धारा है अर संवरविधि है सो मोक्षमार्गकी धारा है ॥ १११ ॥ संसारमें जे आश्रवरूप अज्ञान है सो कर्मबंधकों उत्पाद ( उपजावे) है, अर संवररूप ज्ञान है सो मोक्षपदका दाता है । जिस संवररूप ज्ञानसे आश्रवरूप अज्ञानका क्षय होय है, तिस संवररूप ज्ञानकूं अब नमस्कार करे है ॥ ११२ ॥
सार.
अ० १३
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