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॥ अव इस ग्रंथके सब कवित्तोंकी जोड संख्या कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥तीनसे दसोत्तर सोरठौं दोहाछंद दोऊ, जुगलसे पैतालीस इकतीसा आने हैं । च्यासी सु चौपईये सेंतीस तेईस सवैये, वीस छैप्पै अठारह कवित्त वखाने हैं। सात फुनिही अडिल्लं चार कुंडलीये मीले, सकल सातसे सत्ताईस ठीक ठाने हैं। बत्तीस अक्षरके सलोक कीने ताके ग्रंथ, सव संख्या सत्रहसे सात अधिकाने हैं ॥१॥
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समयसार समाप्त.
यह पुस्तक नाना रामचंद्र नाग फलटणवालेने मुंबई “निर्णयसागर" यंत्रमें
छपायके प्रसिद्ध कीया. वीरनिर्वाण संवत् २४४० । सन १९१४ शके १८३६ जेष्ठ शुद्ध ५ इस पुस्तकका हक्क आक्ट २५ प्रमाणे रजिष्टर करके प्रसिद्ध करनेवालेने आपके स्वाधीन रखा है.
Published by Nana Ramachandra Naga, Kumbhoja, Dt. Kolhapur.
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Printed by Ramchandia Yesu Shedge, at the Nunaya Sagar Press,
23 Kolbhat Lane ---BOMBAY..