Book Title: Samaysar Natak
Author(s): Banarsidas Pandit, Nana Ramchandra
Publisher: Banarsidas Pandit

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Page 538
________________ SAISIRSHORRORSTAIGASAVISASSLUGE ॥अव ग्रंथके अंतमें संवररूप ज्ञानकू नमस्कार करे है ॥ सवैया ३१ सा ॥जगतके प्राणि जीति व्है रह्यो गुमानि ऐसो, आश्रव असुर दुखदानि महाभीम है। ताको परताप खंडिवेको परगट भयो, धर्मको धरैया कर्म रोगको हकीम है। जाके परभाव आगे भागे परभाव सब, नागर नवल सुख सागरकी सीम है। संवरको रूप धरे साधे शिव राह ऐसो, ज्ञान पातसाह ताकों मेरी तसलीम है ।। ११३॥ I अर्थ जगतके सब प्राणीकू जीतिके गुमानी हो रह्या है, ऐसा आश्रव ( अज्ञानरूप ) राक्षस ||२|| है सो महा भयानक दुख देनेवाला है। तिसका प्रताप खंडण करनेवू अर धर्म धारण करनेकू प्रत्यक्ष हासंवररूप ज्ञानअधिपति है, सो कर्मरूप महा रोगका नाश करनेकू बडा हकीम है । तिस संवररूप 5 ६) ज्ञानके प्रभाव आगे समस्त काम क्रोधादिकके अर- राग द्वेषादिक कर्मके प्रभाव भागे है, अर नागर (चतुर) तथा अनादि कालसे न पायो ऐसो वे सुखरूप समुद्र की सीमा है । संवररूपको धरनहार अर मोक्षमार्गको साधनहार, ऐसा जो ज्ञानरूप बादशाह है तिसकू मेरी तसलीम (बंदना) है ॥ ११३॥|| FRSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSS ॐ ॥ इति श्रीबनारसीदासकृत चतुर्दश गुणस्थानाधिकार समाप्त ॥ GSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSGE ।

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