Book Title: Samaysar Natak
Author(s): Banarsidas Pandit, Nana Ramchandra
Publisher: Banarsidas Pandit

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Page 527
________________ समय॥१३॥ +%E SURESSURESMS ॥अब चारित्र कर्मके उदयते सात परिसह आवे है सो कहे है ॥ कुंडली छंद ॥ सार. . . . येते संकट मुनि सहे, चारित्र मोह उदोत । लज्जा संकुच दुख धरे, . अ०१३ नगन दिगंबर होत। गगन दिगंवर होत, श्रोत्र रति खाद न सेवे । हूँ .... त्रिय सनमुख हग रोक, मान अपमान न वेवे । थिर व्है निर्भय रहे, सहे कुवचन जग जेते । भिक्षुक पद संग्रहे, लहे मुनि संकट येते ॥ ८५॥ . - अर्थ-दिगंबर होय तब नग्नकी लज्जाका दुःख उपजे सो सहन करे, कर्ण इंद्रियके विषयका P स्वाद नहि सेवे, स्त्रीके हावभावकू मन भूले नही, मान अपमान देखे नही, कोई भय आवेतो ध्याना- 12 ॐ सनछोडि भागे नही, जगतके कुवचन सहे, अर भिक्षा याचनाका दुःख माने नही, ऐसे सात परिसह 8 ( संकट ) चारित्र मोहनीय कर्मके उदयते आवे है सो मुनिराज सहन करे है ॥ ८५ ॥ ॥अब ज्ञानावर्णीयके २ दर्शनमोहनीयका १ अर अंतराय का १ ऐसे ४ परिसह कहे है । दोहा ।हूँ अल्प ज्ञान लघुता लखे, मतिउत्कर्ष विलोय। ज्ञानावरण उदोत मुनि, सहे परीसह दोय ॥८६॥ * सहें अदर्शन दुर्दशा, दर्शन मोह उदोत । रोके उमंग अलाभकी, अंतरायके होत ॥ ८७॥ र अर्थ-अल्प ज्ञान होयतो लघुता सहन करे, अर बहु ज्ञान होयतो गर्व नहि करे । ऐसे अज्ञान है 5 अर प्रज्ञा (गर्व) ये दोय परिसह ज्ञानावर्णीय कर्मके उदयते आवे है सो मुनिराज सहन करे है , ॥८६॥ दर्शन मोहनीय कर्मके उदयते सम्यग्दर्शन• संकट आवेतो सम्यग्दर्शन छोडे नही, अर 8 हू अंतराय कर्मके उदयते अलाभ होयतो लाभकी इच्छा करे नहीं, ऐसे दर्शन मोहनीय कर्मका एक अर ६ हूँ अंतराय कर्मका एक ये दोय परिसह मुनिराज सहन करे है ॥ ८७ ॥ -MAITARKARREARRANG

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