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समय
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॥ अथ त्रयोदशम सयोग केवली गुणस्थान प्रारंभ ॥ १३ ॥ ३१ ॥ सा ॥जाकी दुःख दाता घाती चोकरी विनश गई, चोकरी अघाती जरी जेवरी समान है ॥ प्रगटे तब अनंत दर्शन अनंत ज्ञान, वीरज अनंत सुख सत्ता समाधान है ॥ जाके आयु नाम गोत्र वेदनी प्रकृति ऐसि, इक्यासि चौऱ्यासि वा पच्यासि परमान है ॥ सोहै जिन केवली जगतवासी भगवान, ताकि ज्यो अवस्था सो सयोग गुणथान है ॥ १०४ ॥
अर्थ - जिस मुनीने आत्माके गुणका घात करनेवाले दुःखदाता चार घातिया (मोहनीय, ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अर अंतराय, ) कर्मका क्षय कीया है, अर आत्माके गुणका न घात करनेवाले चार अघातिया ( आयु, नाम, गोत्र, अर वेदनी, ) कर्म रह्या है सोहूं जरी जेवरी समान रह्या है । मोहनीय कर्मका नाश होनेसे अनंत सुखसत्ता समाधानी ( सम्यक्त ) प्रगटे है, ज्ञानावरणीय कर्मका नाश होनेसे अनंत ज्ञान प्रगटे है, दर्शनावरणीय कर्मका नाश होनेसे अनंत दर्शन प्रगटे है, अर अंतराय कर्मका नाश होनेसे अनंत शक्ती प्रगटे है । कोई केवलज्ञानी मुनीकूं चार अघातिया कर्मकी ८५ प्रकृती रहे है, कोई केवलज्ञानी मुनीकूं आहारक चतुष्क ( आहारक शरीर, आहारक अंगोपांग, आहारक संघात, आहारक बंधन, ) अर जिननाम, इन ५ प्रकृती विना ८० प्रकृती रहे, कोई केवलज्ञानी मुनीकूं आहारक चतुष्क विना ८१ प्रकृती रहे है, अर कोई केवलज्ञानी मुनीकूं १ जिननाम प्रकृती विना ८४ प्रकृती रहे है, ऐसे गुणका जो है सो जिन है, केवली है, वा जगतका भगवान् है, तिसकी जो अवस्था सो तेरवा सयोग केवली गुणस्थान है ॥ १०४ ॥
सारअ० १३
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