________________
मिथ्यात्वकी एक अर मिश्र मिथ्यात्व की एक ऐसे छह प्रकृतीका क्षय करे अर दर्शन मोहनीयके एक प्रकृतीका उपशम करे सो तृतीय क्षयोपशम सम्यक्त है ||३||२४|| अब वेदक सम्यक्तके चार भेद कहे | है - अनंतानुबंधीकी चार प्रकृती क्षय करे अर मिथ्यात्व तथा मिश्र मिथ्यात्व इन दोय प्रकृतीका उपशम | करे अर सम्यक्त मोहनीके एक प्रकृतीका उदय होय सो प्रथम क्षयोपशम वेदक सम्यक्त है || १ ||१५|| अनंतानुबंधीकी चार अर मिथ्यात्वकी एक ऐसे पांच प्रकृतीका क्षय करे अर मिश्र मिथ्यात्वके एक प्रकृतीका उपशम करे अर सम्यक्त मोहनीके एक प्रकृतीका उदय होय सो दुतिय क्षयोपशम वेदके | सम्यक्त है || २ ||१६|| अनंतानुबंधीकी चार मिथ्यात्वकी एक अर मिश्र मिध्यात्वकी एक ऐसे छह प्रकृतीका | क्षय करे अर सम्यक्त मोहनीके एक प्रकृतीका उदय होय सो क्षायक वेदक सम्यक्त है ॥ ३ ॥ अनंतानुबंधी चार, मिथ्यात्वकी एक अर मिश्रमिध्यात्वकी एक ऐसे छह प्रकृतीका उपशम अर सम्यक्त मोहनीके एक प्रकृतीका उदय होय सो उपशम वेदक सम्यक्त है ॥ ४ ॥ ४७ ॥
| उपशम क्षायककी दशा, पूव षट् पद मांहि । कहि अव पुन रुक्तिके, कारण वरणी नांहि ॥४८॥ अर्थ- -उपशम सम्यक्तका अर क्षायक सम्यक्तका स्वरूप ४२ वे छपैयामें कह्या है ॥ ४८ ॥ क्षयोपशम वेदक क्षै, उपशम समकित चार। तीन चार इक इक मिलत, सव नव भेद विचार ॥ ४९ ॥ | अब निश्चै व्यवहार, सामान्य अर विशेष विधि । कहूं चार परकार, रचना समकित भूमिकी ॥५०॥
अर्थ — क्षयोपशम सम्यक्त, वेदक सम्यक्त, क्षायक सम्यक्त, अर उपशम सम्यक्त, ऐसे मूल | सम्यक्तके चार भेद है । अर क्षयोपशम सम्यक्तके तीन भेद, वेदक सम्यक्तके चार भेद, क्षायक सम्यक्तका | एक भेद, अर उपशम सम्यक्तका एक भेद, ऐसे सब मिलिके सम्यक्तके उत्तर भेद नव ॥ ४९ ॥