Book Title: Samaysar Natak
Author(s): Banarsidas Pandit, Nana Ramchandra
Publisher: Banarsidas Pandit
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समय- ॥१४॥
सार
अ०१३
SCORIGANGASHEMANTARBAREIGNUGRECRUGREEKRESSES
चो-जो दिन ब्रह्मचर्य व्रत पाले । तिथि आये निशि दिवस संभाले ॥
गहि नव वाडि करे व्रत रख्या । सो पट् प्रतिमा श्रावक आख्या॥ ६४॥ ॐ अर्थ-जो पर्व दिनमें सामायिक समान चार प्रहर अथवा आठ प्रहर पर्यंत समता भाव धारण ६ करे । सो चौथी प्रोषध प्रतिमा है ॥४॥ ६२ ॥ जो प्रासुक भोजन अर प्रासुक जल लेवे । सो पांचवी ५ सचित्त त्याग प्रतिज्ञा है ॥ ५॥ ६३ ॥ जो नित्य दिनमें ब्रह्मचर्य व्रत पाले अर पर्व दिनोंमें रात्रंदिन है ब्रह्मचर्य व्रत पाले । तथा नव वाडीते शीलकी रक्षा करे सो छट्ठी दिवा मैथुन त्याग प्रतिमा है ॥६॥६॥
॥ अव सातवे प्रतिमाका अर नव वाडीका स्वरूप कहे है ॥ चौपई ॥ कवित्त ॥जो नव वाडि सहित विधि साधे । निशि दिनि ब्रह्मचर्य आराधे ॥ सो सप्तम प्रतिमा धर ज्ञाता । सील शिरोमणि जगत विख्याता ॥६५॥ तियथल वास प्रेम रुचि निरखन, दे परीछ भाखे मधु वैन । पूरव भोग केलि रस चिंतन । गरुव आहार लेत चित चेन ॥. करि सुचि तन सिंगार वनावत, तिय परजंक मध्य सुख सैन ।।
मनमथ कथा उदर भरि भोजन, ये नव वाडि कहे जिन वेन ॥ ६६ ॥ * अर्थ-जो नव वाडिते शीलकी रक्षा करे अर रात्रंदिन ब्रह्मचर्य व्रत• पाले है।सो सातवी ब्रह्मचर्य ६ प्रतिमाधारी ज्ञानी जगतमें विख्यात शील शिरोमणी है ॥७॥६५॥ स्त्रीकेपास एकांतमें बैठणा, स्त्रीकू प्रेमसे हूँ देखना, स्त्रीकू काम दृष्टीते देख मधुर वचन बोलना, पीछेके भोग क्रीडाका स्मरण करना, पौष्टीक आहार
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॥१४॥

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