Book Title: Samaysar Natak
Author(s): Banarsidas Pandit, Nana Ramchandra
Publisher: Banarsidas Pandit

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Page 508
________________ #IA - मिथ्यात्व इन दोय अवस्थाका खरूप कहूंहूं ॥ १६ ॥ जो मिथ्यात्वके दल ( मिथ्यात्व, मिश्र मिथ्यात्व 8 अर सम्यक् प्रकृति मिथ्यात्व, इन तीनू प्रकृती) • उमशम कराय मिथ्यात्वके ग्रंथीकू भेदि (स्व अर परका स्वरूप जाननहार भेदज्ञान प्रगट होय) । फेर मिथ्यात्वमें आजाय सो सादि मिथ्यात्वी है ॥ १७ ॥ जिसने मिथ्यात्वकी ग्रंथी भेदी नही ( स्व परका भेद जाना नही ) सदाकाल देहमें आत्मपणाकी बुद्धि राखे है । ऐसा जो विकल आत्मस्वरूपते बहिर्मुख है सो अनादि मिथ्यात्वी है ॥ १८ ॥ ऐसे प्रथम मिथ्यात्व गुणस्थानका अभिधान (स्वरूप ) कह्या सो समाप्त भया ॥१॥ ॥अथ द्वितीय सासादन गुणस्थान प्रारंभ ॥२॥स०३१ सा ॥जैसे कोउ क्षुधित पुरुष खाई खीर खांड, वोन करे पीछेके लगार खाद पावे है।।। तैसे चढिं चौथे पांचे छठे एक गुणस्थान, काहूं उपशमीकू कषाय उदै आवे है ॥ ताहि समैं तहांसे गीरे प्रधान दशा त्यागि, मिथ्यात्व अवस्थाको अधोमुख व्है धावे है। बीच एक समै वा छ आवली प्रमाण रहे, सोइ सासादन गुणस्थानक कहावे है ॥२०॥ अर्थ-जैसे कोई क्षुधावान मनुष्यने खीर शक्कर खाई, अर तिसकू वमन होजायतो वमनके पीछेसे खीर शकरका लगार स्वाद आवे है । तैसे कोई जीव उपशम सम्यक्त ग्रहण करके चौथे वा पांचवे वा 8 छठे इनमें कोई एक गुणस्थान चढजाय, अर तहां अनंतानुबंधी कषायका उदय आवेतो। उसही वक्त तिस गुणस्थानते गिरे अर सम्यक्तळू त्यागिके, अधोमुख होय नीचे मिथ्यात्व गुणस्थानके तरफ धावे है। तब ( सम्यक्त त्यागेबाद अर मिथ्यात्व गुणस्थान प्राप्त होनेतक बीचमें) एक समय काल प्रमाण रहे वा उत्कृष्ट छह आवली काल पर्यंत रहे, सो सासादन गुणस्थान कहावे है ॥ २०॥ QUANDO SAIRASTUSEGADUS

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