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अथ श्रीसमयसार नाटकको एकादशमो स्याद्वाद द्वार प्रारंभ ॥११॥
॥ अव श्रीअमृतचंद्र मुनिराज आपना हेतु कहे है | चौपाई ॥ - अद्भुत ग्रंथ अध्यातम वाणी । समुझे कोई विरला प्राणी ॥ या स्यादवाद अधिकारा । ताको जो कीजे विसतारा ॥ १ ॥ तो ग्रंथ अतिशोभा पावे । वह मंदिर यह कलश कहावे ॥ तब चित अमृत वचन गढ खोले । अमृतचंद्र आचारज बोले ॥ २ ॥ अर्थ — समयसार नाटक अध्यात्मवाणी अद्भुत ग्रंथ है इसिका मर्म कोई विरला ज्ञानी समझे | इस ग्रंथमे गर्भित स्याद्वादका कथन है पण तिसकूं विस्तार से वर्णन करिये तो ॥ १ ॥ ये ग्रंथ विशेष शोभा पावे जैसे वह मंदिर अर यह कलश कहावेगा । ऐसे चित्तमे गंभीर अर अमृत समान वचनका | विचार करि अमृतचंद्र आचार्य बोले ॥ २ ॥
कुंदकुंद नाटक विषें, कह्यो द्रव्य अधिकार । स्याद्वाद नै साधि मैं कहूं अवस्था द्वार ॥ ३ ॥ कहूं मुक्ति पदकी कथा, कहूं मुक्तिको पंथ । जैसे घृत कारिज जहां तहां कारण दधि मंथ ॥
१ ॥
अर्थ — श्रीकुंदकुंदाचार्यकृत समयसार नाटकमें जीव अर - अजीव द्रव्यका स्वरूप कह्यो । अब मैं स्याद्वाद नय द्वार अर साध्य साधक अवस्था द्वार ऐसे दोय द्वार कहूंहूं ॥ ३ ॥ स्याद्वाद द्वारमें चतुर्दश नयका अर साध्य साधक द्वारमें मुक्तिपद ( साध्य ) का अर मुक्तिपथ ( साधक ) का कथन कहूंहूँ । जैसे घृत 'कार्य वास्ते दधि मंथनका कारण करना चाहिये ॥ ४ ॥