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समय॥१२२॥
विनसे है अर तिसका नाश होते दुःख होय । जैसे बहु तृणवाली धर्ती होय सोही अग्निसे जली जाय पण विना तृणकी धरती कोई रीती से जले नही ॥ ११ ॥ सद्गुरु है सो उपदेशमें प्रत्यक्ष आत्मानुभवका स्वरूप कहे है । तिसकूं सुनिके बुद्धिमान है सो धारण करे है अर मूढ है सो उपदेशके मर्मकूं जानेही नहि ॥ १२ ॥
॥ अव गुरूका उपदेश कोईकूं रुचे अर कोईकूं न रुचे तिसका कारण कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥जैसे काहू नगर वासी द्वै पुरुष भूले, तामें एक नर सुष्ट एक दुष्ट उरको || . दोउ फिरे पुरके समीप परे कुवटमें, काहू और पंथिककों पूछे पंथ पुरको ॥ सो तो कहे तुमारो नगर ये तुमारे ढिग, मारग दिखावे समझावे खोज पुरको ॥ एते पर सुष्ट पहचाने पै न माने दुष्ट, हिरदे प्रमाण तैसे उपदेश गुरुको ॥ १३ ॥ अर्थ — जेसे कोई नगर निवासी दोय मनुष्य रातकूं आपने नगरके पास आय मार्ग भूले, तिसमें एक मनुष्य सुबुद्धीका था अर एक मनुष्य कुबुद्धीका था । ऐसे दोनूं मनुष्य नगरके समीप कुवटमें परे अर कोई पथीककूं नगरका मार्ग पूछने लगे । सो पथिक कहे तुमारो नगर यह समीप पासही है, ऐसे नगरका मार्ग समझायके दिखावे । तब तिस मार्गकूं सुष्ट पहिचाने पण दुष्ट नहि माने है, तैसे गुरूका उपदेशहूं श्रोतेका जैसे हृदय होयगा तैसे तो प्रमाण करेगा ॥ १३ ॥
जैसे काहू जंगलमें पावसकि समें पाइ, अपने सुभाय महा मेघ - वरखत है ॥ आमल कषाय कटु तीक्षण मधुर क्षार, तैसा रस वाढे जहां जैसा दरखत है ॥ तैसे ज्ञानवंत नर ज्ञानको बखान करे, रस कोउ माही है न कोउ परखत है ॥
सार
अ० १२
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