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समय॥१२॥
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॥ अव ज्ञानके क्रियाका स्वरूप कहे है दोहा ॥
सार. * विनसिअनादि अशुद्धता, होइ शुद्धता पोख। ता परणतिको बुध कहे, ज्ञानक्रियासों मोख ॥३६॥ अ० १२ * अर्थ-आत्मामें अनादिकालसे अज्ञानकी अंशुद्धता है तिसका जहां नाश होय तहां ज्ञानकी शुद्धता ॐ पुष्ट होय । ऐसी आत्माकी शुद्ध परणती होय सो ज्ञानकी क्रिया है । तिस परणती• बुधजन कहे है की 5 इस ज्ञानक्रियासे मोक्ष होय ॥ ३६ ॥
॥ अव सम्यक्तसे क्रमक्रमे ज्ञानकी पूर्णता होय सो कहे है ॥ दोहा ॥जगी शुद्ध सम्यक् कला, बगी मोक्ष मग जोय। वहे कर्मचूरण करे, क्रम क्रम पूरण होय ॥३७॥४ है जाके घट ऐसी दशा, साधक ताको नाम । जैसे जो दीपक धरे, सो उजियारो धाम ॥३८॥ ___अर्थ-जिसकू शुद्ध सम्यक्तकी कला जगी है सो मोक्षमार्गळू चले है । अर सोही क्रमे क्रमे कर्मका चूर्ण करिके पूर्ण परमात्मा होय है ॥ ३७॥ जैसे घरमें जो दीपक धरे तो उजियाला होयही हैं। जिसके 8 हृदयमें ऐसी सम्यक्तदशा भई तिसका नाम साधक है ॥ ३८ ॥, .
,,, ॥ अव सम्यक्तकी महिमा कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥जाके घट अंतर मिथ्यात.अंधकार गयो, भयो परकाश शुद्ध समकित भानको ॥ ' जाकि मोह निद्रा घटि ममता पलक फटि, जाणे निज मरम अवाची भगवानको ॥ जाको ज्ञान तेज बग्यो उद्दिम उदार जग्यो, लग्यो सुख पोष समरस सुधा पानको॥
॥१२॥ ताहि सुविचक्षणको संसार निकट आयो, पायो तिन मारग सुगम निरवाणको ॥३९॥5 : अर्थ, जिसके हृदयमें अनादि कालका मिथ्यात्व अंधकार हुता सो गया है, अर शुद्ध सम्यक्तरूप
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