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समय
थिरता न होय विकलपकी तरंगनीमें, चंचलता बढे अनुभौ दशा न लहिये ।। सार.
ताते जीव अचल अवाधित अखंड एक, ऐसो पद साधिके समाधि सुख गहिये ॥४॥ अ०१२ ॥१२७॥ है
- अर्थ-जीव है सो एक नयसे अस्तिरूप है, एक नयसे नास्तिरूप है, एक नयसे अनेक रूप है, * एक नयसे एकरूप है, एक नयसे स्थिररूप है अर एक नयसे अस्थिररूप है, इत्यादि जीवका नाना-15 ( प्रकारका स्वरूप कहे है। एक नय• दुसरा नय प्रतिपक्षी (उलटा) दीसे है, तिस ऊपर दूजा नय नही • दिखायेतो वादविवाद होजाय । ताते नय भेदते विकल्पके तरंग उठे अर विकल्पमें चेतन (जीव) * की स्थीरता न होय, तथा चंचलता बढे है तब अनुभवदशा ग्रहि न जाय । ताते अनुभवमें नयका
पक्ष छोडिके, जीवद्रव्य अचल है अबाधित है अखंड है अर एक है, ऐसे स्वरूपळू साधिके समाधि ३ (अनुभव ) सुख ग्रहण करिये ॥४१॥
॥ अव द्रव्य क्षेत्र काल अर भावते आत्माका अखंडितपणा दिखावे है ॥ सवैया ३१ सा ॥जैसे-एक पाको अम्र फल ताके चार अंश, रस जाली गुटलि छीलक जव मानिये ॥ येतो न बने-पैं ऐसे बने जैसे वह फल, रूप रस गंध फास अखंड प्रमानिये ॥ तैसे एक जीवको दरव क्षेत्र काल भाव, अंश भेद करि भिन्न भिन्न न वखानिये॥ . द्रव्यरूप क्षेत्ररूप कालरूप भावरूप, चारो रूप अलख अखंड सत्ता मानिये ॥ ४२ ॥ ___ अर्थ-शिष्य कहे-जैसे एक पाके अंबके रस, जाली, गुटली, अर छाल, ये चार अंश है । तैसे ६ जीवके द्रव्य क्षेत्र काल अर भाव ये चार अंश होयगे ? तिसकं गुरू कहे हे शिष्य तूं अंशकू खंड ॥१२॥ * समझा सो द्रव्यमें खंड होय नही ताते तेरा दृष्टांततो न बना, पण जैसे एक आंब फलमें रूप रस १
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