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SASTRERIRLO 564CAIRASIA APADRIO
॥ अब देहका नाश होते जीवका नाश होय इस नवम नयका स्वरूप कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥ दोहा ॥
कोउ क्रूर कहे काया जीव दोउ एक पिंड, जब देह नसेगी तबही जीव मरेगो॥ छाया कोसो छल कीधोमाया कोसोपरपंच, काया में समाइफिरि कायाकन धरेगो॥ सुधी कहे देहसों अव्यापक सदैव जीव, समैपाय परको ममत्व परिहरेगो ॥
अपने स्वभाव आइ धारणा धरामें धाइ, आपमें मगन व्हेके आपशुद्ध करेगो ॥२१॥ ज्यों तन कंचुकि त्यागसे, विनसे नांहि भुजंगायों शरीरके नाशते, अलख अखंडित अंग ॥२२॥ al अर्थ-कोई क्रूर (चार्वाकमति) कहेकी देह अर जीव एक पिंड है, ताते जब देहका नाश
होय तब जीवहूं मरे है। जैसे वृक्षका नाश होते वृक्षके छायाका नाश होय है अथवा इंद्रजालवत् प्रपंच है, जीव मरे जब देहमेंही समाइ जाय अर फेर देह नहीं धरेगा दीपक समान बुझ जायगा । तिसळू बुद्धिमान कहे जीव सदा देहसे अव्यापक है, सो जब पुद्गलादिकका ममत्व छोडेगा । तब अपने 8 ज्ञान स्वभावकू धारण करके, स्थीरतारूप होय आत्मस्वरूपमें मग्न होयके आत्माकू कर्म रहित करेगा ॥ २१ ॥ जैसे सर्पके शरीर ऊपर कांचली आवे, तिस कांचलीकुं त्यजनेसे सर्पका नाश नहि होय है। तैसे शरीरका नाश होते, जीवका नाश नही होय है जीव अखंडित रहे है ॥ २१ ॥ २२॥
॥ अव देहके उपजत जीव उपजे इस दशम नयका स्वरूप कहे है॥ सवैया ३१ सा ॥कोउ दुरबुद्धि कहे पहिले न हूतो जीव, देह उपजत उपज्यो है जव आइके ॥ जोलों देह तोलों देह धारी फिर देह नसे, रहेगो अलखज्योतिमें ज्योति समाइके॥ सदबुद्धी कहे जीव अनादिको देहधारि, जब ज्ञानी होयगोकवही काल पाइके ।। तवहीसों पर तजि अपनो स्वरूप भजि, पावेगो परम पद करम नसाइके ॥ २३ ॥
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