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हिरदे उच्छाह सुख। अष्ट करम दल मलन, रुद्र वर्ते तिहि थानक । तन विलक्ष बीभत्स, बंद दुख दशा भयानक । अदभुत अनंत बल चिंतवन, शांत सहज
वैराग्य ध्रुव । नव रस विलास प्रकाश तब, जब सुवोध घट प्रगट हुव ॥ ६ ॥ 51 अर्थ-आत्माकू ज्ञान गुणते भूषित होनेका विचार करना सो भाव शृंगार रस है ॥ १ ॥ कर्मकी निर्जरा होनेका उद्यम करना सो भाव वीर रस है ॥ २ ॥ अपने जीवके समान पर जीव ।
समजना सो भाव करुणा रस है ॥ ३ ॥ आत्मानुभवका हृदयमें उत्साह होना सो भाव हास्य रस है Miln ४ ॥ अष्ट कर्मके प्रकृतीका क्षय करनेकू प्रवर्तना सो भाव रौद्र रस है ॥५॥ देहके अशुचीका विचार
करना सो भाव बीभत्स रस है ॥ ६॥ जन्म मरणके दुःखका विचार करना सोभाव भय रस है ॥७ आत्माके अनंत शक्तीका विचार करना सो भाव अद्भुत रस है ॥ ८ ॥ राग द्वेषदूं निवारिके वैराग्य 5 निश्चल धारण करना सो भाव शांत रस है ॥ ९ ॥ जब हृदयमें सुबुद्धी प्रगट होय तब ही नव भाव | रसकके विलासका प्रकाश होय है ॥ ६॥
चौ०-जब सुबोध घटमें प्रकाशे। तब रस विरस विषमता नासे॥ H . नव रस लखे एक रस मांही। ताते विरस भाव मिटि जांही ।। ७॥ . P अर्थ-जब हृदयमें सुबुद्धीका प्रकाश होय तब ये रस है अर ये विरस है ऐसी जो विषमता (विपरीतता) है सो नाश पावे । अर नव रस है सो एक शांत रसमे है सो ही दीखे है ताते विरसके भाव सहज मिटे अर एक शांत रसमें आत्माका ठहरना होय ॥ ७ ॥ दोहा ॥-- सव रस गर्मित मूल रस, नाटक नाम गरंथ । जाके सुनत प्रमाण जिय, समुझे पंथ कुपंथ ॥८॥
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