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समय
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जब ध्यान जलसों पखारिके धवल कीजे, तव निराकार शुद्ध ज्ञानमई होइ ये ॥ तासों स्यादवादी कहे ज्ञानको स्वभाव यहै, ज्ञेयको आकार वस्तु मांहि कहाँ खोइये ॥ जैसे नानारूप प्रतिबिंबकी झलक दीखे, यद्यपि तथापि आरसी विमल जोइजे ||१६|| अर्थ — कोई कुबुद्धिवाला कहे की ? ज्ञानमें जो ज्ञेयके आकार प्रतिबिंबित होय है, सो शुद्ध ज्ञानकूं कलंक है तिस कलंककूं धोइये। अर जब ध्यान जलसे ज्ञानका कलंक धोइके निर्मल कीजे, तब ज्ञान शुद्ध निराकार होय है । तिस कुबुद्धीवालेकूं स्याद्वादी ज्ञानी कहे - ज्ञानको स्वभाव यह की, तिसमें ज्ञेयके आकार सदा झलकेही - है सो ज्ञेयके आकार दूर करनेका क्या मतलब है । जैसे आरसीमें नाना प्रकारकेरूप प्रतिबिंबित होय है, तथापि आरसी निर्मलही दीखे है आरसीकूं कोई, | प्रकारे प्रतिबिंबका कलंक दीखे नही ॥ १६ ॥
है
॥ अव ' जबतक ज्ञेय है तबतक ज्ञान है इस पंचम नयका स्वरूप कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥ कोउ अज्ञ कहे ज्ञेयाकार ज्ञान परिणाम, जोलों विद्यमान तोलों ज्ञान परगट है ॥ ज्ञेय विनाश होत ज्ञानको विनाश होय, ऐसी वाके हिरदे मिथ्यातकी अटल है । समवंत अनुभौ कहानि, पर्याय प्रमाण ज्ञान नानाकार नट है ॥ निरविकलप अविनश्वर दरवरूप, ज्ञान ज्ञेय वस्तुसों अव्यापक अघट है ॥ १७ ॥ अर्थ — कोई अज्ञ कहे - जबतक ज्ञानका परिणमन ज्ञेयके आकार विद्यमान है, तबतक ज्ञान प्रगट रहे है । अर ज्ञेयके विनाश होते ज्ञानकाभी विनाश होय है, ऐसी वाके हृदय में मिथ्यात्वकी अट है । तिनसूं भेदज्ञानी परिचयका दृष्टांत कहे, जैसे नट बहुत प्रकारका सोंग घरे पण नट एकही है।
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सार
अ० ११
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