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समय
है अ०१३
६ ॥ अथ त्रयोदशम सयोग केवली गुणस्थान प्रारंभ ॥ १३॥३१॥ सा॥- सार. १४६॥ जाकी दुःख दाता घाती चोकरी विनश गई, चोकरी अघाती जरी जेवरी समान है ॥
ॐ प्रगटे तब अनंत दर्शन अनंत ज्ञान, वीरज अनंत सुख सत्ता समाधान है ॥
जाके आयु नाम गोत्र वेदनी प्रकृति ऐसि, इक्यासि चौयासि वा पच्यासि परमान है ॥ हूँ सोहै जिन केवली जगतवासी भगवान, ताकि ज्यो अवस्था सो सयोग गुणथान है ॥१०॥ ' अर्थ-जिस मुनीने आत्माके गुणका घात करनेवाले दुःखदाता चार धातिया (मोहनीय,
ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अर अंतराय,) कर्मका क्षय कीया है, अर आत्माके गुणका न घात कर-हूँ है नेवाले चार अघातिया ( आयु, नाम, गोत्र, अर वेदनी,) कर्म रह्या है सोहूं जरी जेवरी समान रह्या । है है। मोहनीय कर्मका नाश होनेसे अनंत सुखसत्ता समाधानी ( सम्यक्त ) प्रगटे है, ज्ञानावरणीय
कर्मका नाश होनेसे अनंत ज्ञान प्रगटे है, दर्शनावरणीय कर्मका नाश होनेसे अनंत दर्शन प्रगटे है, ॐ अर अंतराय कर्मका नाश होनेसे अनंत शक्ती प्रगटे है । कोई केवलज्ञानी मुनीकू चार अघातिया 8 ६ कर्मकी ८५ प्रकृती रहे है, कोई केवलज्ञानी मुनी• आहारक चतुष्क (आहारक शरीर, आहारक हूँ अंगोपांग, आहारक संघात, आहारक बंधन,) अर जिननाम, इन ५ प्रकृती विना ८० प्रकृती रहे, हैं कोई केवलज्ञानी मुनीकू आहारक चतुष्क विना ८१ प्रकृती रहे है, अर कोई केवलज्ञानी मुनीकू ११ * जिननाम प्रकृती विना ८४ प्रकृती रहे है, ऐसे गुणका जो है सो जिन है, केवली है, वा जगतका
॥१४॥ भगवान् है, तिसकी जो अवस्था सो तेरवा सयोग केवली गुणस्थान है ॥ १०४॥ .
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