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★ निंदा करे साधुकी प्रशंसा करे हिंसककि, सांता माने प्रभूता असाता माने फर्करी ॥ 'मोक्ष न सुहाइ दोष देखे तहां पैठि जाइ, कालसों 'डराइ जैसे नाहरसों बकरी ॥ 'ऐसे दुरबुद्धि भूलि झूठसे झरोखे झूलि, फूलि फीरे ममता जंजीरनीसो जकरी ॥३॥
अर्थ — दुर्बुद्धी है सो आत्मज्ञानकी बात सुनिके गरम होय कुत्ते समान भौं भौं करि ऊठे है, अर अपने मर्जी माफिक बात करे तो नरम होय है अर मर्जी माफक न करे तो अकड जाय है । मोक्ष| मार्गके साधककी निंदा करे है अर हिंसककी प्रशंसा करे है, अपने बडाईकूं सुख समझे है अर परके बडाईकूं दुःख माने है । मोक्षकी रीत सुहावे नही अर दुर्गण दृष्टी पडे तो तिसकूं ग्रहण करे है, अर मृत्युकं ऐसे डरे है की जैसे बाघकूं बकरी डरै है । ऐसे दुर्बुद्धी है सो भ्रममें भूलि झुठके मार्ग में | झूल रहे है, अर डोले फिरे है पण ममतारूप बेडीते बंध्या है ॥ ३८ ॥
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॥ अव स्याद्वाद ( अनेकांत ) मतकी प्रशंसा करे है ॥ कवित्त ॥ दोहा ॥ - केई कहे जीव क्षणभंगुर, केई कहे करम करतार | कई कर्म रहित नित जंपहि, नय अनंत नाना परकार । जे एकांत गहे ते मूरख, पंडित अनेकांत पख धार | जैसे भिन्न भिन्न मुकता गण, गुणसों गहत कहावे हार ॥ ३९ ॥ यथा सूत संग्रह विना, मुक्त माल नहि होय' । तथा स्याद्वादी विना, मोक्ष न साधे कोय ||४०||
अर्थ - क्रेई [ बौद्धमती ] कहे जीव क्षणभंगुर है, केई [ मिमांसकमती ] कहे जीव कर्मका कर्त्ता है || केई : ( सांख्यमती ) कहे जीव सदा कर्मरहित है, ऐसे नाना प्रकार के अनंत नय ' है । जे एक पक्षकूंही अंगीकार करे हैं ते तो अज्ञानी है, अर जे सर्व अनेकांत पक्षकूं धारण करे है ते ज्ञानी
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