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मय- ११०८||
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मंत्र तंत्र साधक कहावे गुणी जादूगीर, पंडीत कहावे पंडिताइ जामें लहिये ॥ हे कवित्तकी कलामें प्रवीण सो कहावे कवि, वात कहि जाने सो पवारगीर कहिये॥ ॐ । एते सब विषैके भिकारीमायाधारी जीव; इनिकों विलोकिके दयालरूप रहिये ॥ ११२॥ 6 · अर्थ भेष धरि लोकेनिकू याचना करे सो धर्म ठग कहावे, जाळू महाचारित्र होये सो गुरू है ५ कहावे । मंत्र तंत्रादिक गुणके जे साधक है ते जादूगीर कहावे, अर जामें पंडिताई है ते पंडित कहावे || है कवित्त करनेके कलामें जो प्रवीण सो कवि कहावे, अर जो बात करनेमें हुशीयार है सो व्याख्यानकार 5 ६ कहावें । ये जो समस्त' है सो विषयके भिकारी अर मायाचारी ( कपटी ) है, 'इनळू देखिके आप है दयालरूप रहिये ॥ ११२ ॥ . .
... ॥ अव अनुभवकी योग्यता' कहे है ।। दोहा॥- . जो दयाल भाव सो, प्रगट ज्ञानको अंगे। पै तथापि अनुभौ दशा, वरते विगत तरंग ॥११॥ ६ दर्शन ज्ञान चरण दशा, करें एक जो कोइ । स्थिर व्है साधे मोक्षमग, सुधी अनुभवी सोई ॥११॥
__अर्थ-यद्यपि जो दया भाव है सो ज्ञानका प्रगट अंग है । तथापि आत्माका अनुभव है सो है विकल्पके तरंग रहित वर्ते है ॥ ११३ ॥ जो कोई दर्शन ज्ञान अर चारित्ररूप आत्माकूही माने है। * अर स्थिर होय मोक्ष मार्ग साधे है सोही भेदज्ञानी अनुभवी है ॥ ११४ ॥
॥ अव शुद्ध आत्मानुभवकी महिमा कहे हैं ॥ सवैया ३१ सा॥कोई दृग ज्ञान -चरणातममें वैठि ठोर, भयों निरदोर पर वस्तुकों न परसे ॥ शुद्धता विचारे ध्यावे शुद्धतासे केलि करें, शुद्धतामें थिर व्हे अमृत धारा वरसे ।। ।
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॥१०॥