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ril अर्थ-आत्मा तो शुद्ध ज्ञानमय है अर शुद्ध ज्ञान• देह नही, अर जब देह नहीं तवं ज्ञानकू । मुद्रा भेष पण कोई नही । ताते मोक्षका मूल कारण द्रव्यलिंग नहीं है ॥ १०९ ॥ ज्ञानते द्रव्यलिंग तो प्रत्यक्ष न्यारो है, कला अर वचन ये ज्ञान नहीं है । अर अष्ट महाऋद्धि (आचार, श्रुत, शरीर वचन, वाचना, बुद्धि, उपयोग, संग्रह संलीनता, ) ये ज्ञान नही तथा अष्ट महा सिद्धि (अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व, ) ये पण ज्ञान नहीं ॥ ११०॥
॥ अव ज्ञान है सो आत्मामें है और स्थानमें नही सो कहे है ॥ सवैया ३१॥भेषमें न ज्ञान नहि ज्ञान गुरू वर्तनमें, मंत्रजंत्र तंत्र में न ज्ञानकी कहानी है। ग्रंथमें न ज्ञान नहि ज्ञान कवि चातुरीमें, वातनिमें ज्ञान नहि ज्ञान कहा वानी है। ताते भेष गुरुता कवित्त ग्रंथ मंत्र वात, इनीते अतीत ज्ञान चेतना निशानी है।
ज्ञानहीमें ज्ञान नही ज्ञान और ठोर कहु, जाकेघट ज्ञान सोही ज्ञानकी निदानी है ॥ १११॥ 2 अर्थ-कोई भेषमें ज्ञान नही अर महा चारित्रमें ज्ञान नही, मंत्र जंत्र अर तंत्रमें ज्ञानकी बातही । हा नही है । पुस्तकमें ज्ञान नही अर कविता बनानेके चातुर्यतामें ज्ञान नही, व्याख्यान करनेमें ज्ञान नहीं |
अर जे वाणी है ते कछु ज्ञान नहीं ? | ताते भेष चारित्र मंत्र पुस्तक कविता अर व्याख्यान इन है। समस्तनितें ज्ञान न्यारे है, ज्ञान है सो आत्माका लक्षण है । ज्ञानमेंही ज्ञान है और कहाहूं स्थानमें ज्ञान नही, जाके घटमें ज्ञान है सोही ज्ञानका मूल कारण आत्मा है ॥ १११ ॥
॥ अव भेपादिक धारी जे है ते विपयके भिकारी है सो कहे है ॥ सवैया ३१ सा॥भेष धरि लोकनिको वंचे सो धरम ठग, गुरु सो कहावे गुरुवाई जाके चहिये ॥
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