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र अर्थ-आचार्य कहें है हे शिष्या! जिनेश्वरके वचनका विस्तार है, सो अगम्य अपार है हम कितना
सार. कहेंगे । हमारी बोलनेकी ताकद नही ताते चुप्प रहना भला है, अर बोलीये तो प्रयोजन है जितना
अ०१० बचन बोलना । बहुतं बोलनेसे नाना प्रकारके विकल्प ऊठे है, ताते जितना कार्य है तितना कथन र * कहना बसं है । शुद्ध आत्माके अनुभवका अभ्यास करना, येही परमार्थ अर मोक्षमार्ग है ॥ १२ ॥
शुद्धातम अनुभौ क्रिया, शुद्ध ज्ञान दृग दोर । मुक्ति पंथ साधन वहै, वागजाल सव और ॥१२५॥ 8..' अर्थ-शुद्ध आत्मानुभव करना सोही शुद्ध दर्शन ज्ञान अर चारित्र है । तथा. येही मोक्षमार्गका साधन है और सब वचनाडंबर है ॥ १२५ ॥ . . .
॥ अव आत्माका कैसा अनुभव करना सो कहे है ॥ दोहा ।।- . जगत चक्षु आनंदमय, ज्ञान चेतना भास। निर्विकल्प शाश्वत सुथिर, कीजे अनुभौ तास ॥१२६| , अचलं अखंडित ज्ञानमय, पूरण वीत ममत्व । ज्ञानगम्य वाधारहित, सो है आतम तत्व ॥१२॥
अर्थ-आत्मा है सो जगतमें चक्षु जैसा आनंदमय है अर ज्ञान चेतनारूप प्रकाशमान है। भेदरहित शाश्वत अर स्थीर है ऐसा आत्मानुभव करना ॥ १२६ ॥ अचल अखंडित अर ज्ञानमय है, तथा पूर्ण समाधिवंत अर ममत्वरहित है । ज्ञानगम्य अर कर्मरहित है, सो आत्मतत्व है ॥ १२७ ॥
सर्व विशुद्धि दार यह, कह्यो प्रगट शिवपंथ । कुंदकुंद मुनिराजकृत, पूरण भयो जु ग्रंथ ॥१२॥ 8. अर्थ. जिस.द्वारते आत्माकू सर्व विशुद्धि प्राप्त होय ऐसे अधिकारका यह कथन कीया है, सो 8 प्रत्यक्ष मोक्षका मार्ग,कह्या है । श्रीकुंदकुंद मुनिराजकृत समयसार नाटक ग्रंथ संपूर्ण भयो ॥ १२८ ॥
8॥११०॥ ॥ इति श्रीसमयसार नाटकको दशमों सर्व विशुद्धि द्वार बालबोध सहित समाप्त भयो ॥ १० ॥