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1 . अर्थ-सुमति राधिका तो सतरंज खेल रही है, अर कुमति कुजा चौपट खेल खेले है । पण
सुमति राधिका विवेक चक्रते रात्रदिन जीते है अर कुमति कुना कर्मचक्रते रात्रदिन हारे है ॥ ७९ ॥ जिसके हृदयमें कुमति कुजा वसे है, सो जीव आत्माका अजान है। अर जिसके हृदयमें सुमति || राधिका वसे है, सो ज्ञाता सम्यक्वान है ॥ ८ ॥
॥ अव जहां शुद्धज्ञान है तहांही शुद्ध चारित्र होय है सो कहे है ॥ सवैया ३१ सा.॥दोहा॥जहां शुद्ध ज्ञानकी कला उद्योत दीसे तहां, शुद्धता प्रमाण शुद्ध चारित्रको अंस है.... ता कारण ज्ञानी सब जाने ज्ञेय वस्तु मर्म, वैराग्य विलास धर्म वाको सरवंस है ॥ राग द्वेष मोहकी दशासों भिन्न रहे याते, सर्वथा त्रिकाल कर्म जालसों विध्वंस है ॥ . निरूपाधि आतम. समाधिमें विराजे ताते, कहिये प्रगट पूरण परम हंस है ॥ ८१॥
अर्थ-जहां. आत्मामें शुद्ध ज्ञानके कलाका प्रकाश दीसे है, तहां तिस ज्ञानके प्रमाण मुजब चारित्रका अंश पण उपजे है । ज्ञानी होय ते तो सब ज्ञेय ( वस्तु) का मर्म हेय अर उपादेह जाने है, ताते ज्ञानीळू स्वभावतेही सर्वस्वी वैराग्यविलास गुण प्राप्त होय है। अर राग द्वेष तथा मोहके 5 अवस्थासे भिन्न रहे है, ताते ज्ञानीके त्रिकालवी कर्मका सर्वस्वी विध्वंस होय है। [ पूर्वकृत कर्मकी निर्जरा होय, वर्तमान कालमें नवीन कर्मबंध नहि होय, अर जिस कर्म प्रकृतीकी निर्जरा हुई सो प्रकृती फेर आगामि कालमें बंधे नही ) ऐसे कर्म बंधते छूटे है अर आत्मानुभवमें स्थिर रहे है, ताते ज्ञानीकू प्रत्यज्ञ पूर्ण परमहंस कहिये है ॥ ८१ ॥ ज्ञायक भाव जहां तहां, शुद्ध चरणकी चाल।ताते ज्ञान विराग मिलि, शिव साधे समकाल ।।८२॥
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